12सितम्बर 1883 को अवनि पर अवतरित पुण्यात्मा महान स्वतंत्रता सेनानी
क्रांतिवीर जोरावरसिंह बारहठ कि जन्मतिथि पर शत शत वंदन 🙏
दिल्ली के चांदनी चौक में लार्ड होर्डिंग्ज के जुलुल पर 12दिसम्बर 1911 को बम फेंककर ब्रिटिश सरकार की चुलों को हिला देने वाले जोरावरसिंह रास बिहारी बोस के सहयोगी थे विभिन्न क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने वाले जोरावरसिंह ताउम्र जंगलों में पुलिस से बचने के लिए भटकते रहे देवपुरा जैसी मेवाड़ी जागीर के धणी होकर भी भारत माता के गुलामी के पाश को काटने के लिए जोरावरसिंह ने क्रांति का रास्ता चुना 27 वर्षो के भूमिगत जीवन में उनका अधिकतर समय मालवा की सीतामऊ रीयासत के सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में बीता। एकबार अंग्रेजों को उनकी भनक लगी तो उन्होंने सीतामऊ के तत्कालीन राजा रामसिंह को आदेश दिया कि वे जोरावर को गिरफ्तार कर उन्हें सुपुर्द कर दे। रामसिंह नहीं चाहते थे कि वे किसी चारण क्रांतिवीर को गिरफ्तार करे अतः उन्होंने गुप्तचर के माध्यम से उन्हें सीतामऊ से बाहर निकल जाने का समाचार कहलवाया इस पर जोरावर ने महाराजा को एक रहीम का भावपूर्ण दोहा भेजा
सर सूखे पंछी उड़े, और ही सर ठहराय।
मच्छ कच्छ बिन पच्छ के, कहो राम कित जाय।।
दोहा पढ रामसिंह की आंखों में आंसू आ गए अब स्वयं उन्होंने जोरावरसिंह बारहठ को कहलवाया कि आप मेरे राज्य में निर्भय रहे इस प्रकार जंगलो में भटकते भटकते भारत मां के लाल ने आश्विन शुक्ल पंचमी सन 1939 को इस नश्वर देह को त्याग परलोक गामी हूए।
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