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15 अक्तूबर 2016

जागता जुवान :- रचना घनश्याम गढ़वी

जागता जुवान.
जागता जुवान रहो झुझता जुवान
हे भारत ना शूरा संतान.
                  जागता..
दगलबाजी थी दिकरा हणाय छे
मां भारती नुं अंतर अकऴाय छे
सिमाडा लोपेछे शत्रु शयतान
                जागता...
तमे सिमाडे अडिखम उभेल छो
मर्द मुछाऴा छोगाळा छेल छो
तमे छो भारत नी आन बान शान
                   जागता..
धसी धिंगाणे दुश्मन ने ढाळजो
जाया जननि नां दुध ने उजाळजो
भले थइजाती काया कुरबान
           जागता...
तमने देवा ने साथ ने शा'बाश्शी
तमारी संगे छे सहु देश वासी
नमवा नहीं दइये आपणुं निशान.
           जागता....
मात्रुभूमि नुं रक्षण ऐ धर्म छे
देशभक्ति सत्कर्म ऐज मर्म छे
श्याम'गायछे तमारां यशोगान.
जागता जुवान रहो झुझता जुवान.
             🌄

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