चारणो गढवी केम कहेवाया ?
क्षत्रियो साथे विशेष स्नेहनो नातो रहेतो होवाथी क्षत्रियोना आग्रहने वश केटलाक वन वगडानां वासी चारणोऐ गढवाळा गाममां रहेवानुं पसंद कयुॅ कारण के रोज रोज दरबारमां के दरबार गढनी डेलीऐ डायरामां सवारथी ज कसुंबा पाणीनी छोळुं उडे अने अलकमलकना ईतिहासनी वातुं चारणो पोतानी आगवी शैली थकी संभळावे त्यारे राज दरबारमां के डेलीना डायरामां बेठेला लोको मंत्रमुग्घ थईने सांभळता अने ऐ धटना दश्य जाणे नजर सामे बनतुं होय तेवी अनुभूति चारणोनी वाणी थकी लोकोने थती. समय क्यां पसार थई जाय ऐनी खबर रहेती नहीं. जेथी चारणोने आग्रह करीने वन वगडानां नेसडामां आवन जावनने बदले गढ मांहेनी सुरक्षित क्षत्रियोना निवासस्थान बाजुनी जग्यामां मकान आपीने वसाववामां आवतां हतां. आजे पण क्षत्रियोना निवासनी नजीकमां ज चारणोनो चोरो अने चारण शेरी तथा चारणोना निवास दरबारगढनी बाजुमां ज मोझुद छे.
ज्यारे अघमीॅ-विघॅमीओनी चडाई राज पर आवती त्यारे राजवी युद्घमां पोताना शूरवीर साथीदारो साथे युद्घमां वीरता बताववा सामे लडवा जता त्यारे चारणोने गढनी जवाबदारी सोंपीने जता. राजवी विजयी थईने आवे तो चारणो तेमने बिरदावता अने राजवी युद्घमां खपी जाय अने दुश्मनो गढ पर चडी आवे त्यारे चारणो गढ मांहेनी स्त्रीओ अने बाळकोनां रक्षण माटे कदी शस्त्रो उपाडी रकतपात करवामां नहीं मानता ऐवा चारणो मनु स्मृतिनां आदर आदेश प्रमाणे आपघमॅ शिरे चडावी शस्त्र घारण करीने गढनी रक्षा माटे जय माताजी कहीने बहादुरीथी लडीने दुश्मनोनो सामनो करी पोताना प्राण न्योछावर करी देता. माटे चारणोने गढवीर कहेवामां आव्या. समय जतां अपभ्रंशताने लीघे गढवीरने बदले गढवी बोलाय छे.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
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