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8 जनवरी 2017

लळी लळी पाय लागु रचना :- चारणकविश्री तखतदान रोहडीया (दान अलगारी)

लळी लळी पाय लागु
रचना :- चारणकविश्री तखतदान रोहडीया (दान अलगारी)
लळी लळी पाय लागु दयाळी दया मागु, रे मोगल माडी...(टेक)
तु चौद भुवनमां रेती, उडळ मा आभ लेती,
छोरूने खम्मा केती, रे मोगल माडी
           लळी लळी पाय लागु....(टेक)
डाढाळी देव ऐवी, सुर नाग नर सेवी,
तने केवडीक केवी, रे मोगल माडी
           लळी लळी पाय लागु....(टेक)
घांघणीया घरे आवी, तात देवसुर दिपावी,
वंश चारणे वधावी, रे मोगल माडी
           लळी लळी पाय लागु....(टेक)
तुं छो तरणने तारण, वळी वंशनी वधारण,
चंडीका खरी चारण, रे मोगल माडी
           लळी लळी पाय लागु....(टेक)
त्रिशुळ लईने हाथे, सहु जोगणीनी साथे,
भेळीयो ओढी माथे, रे मोगल माडी
           लळी लळी पाय लागु....(टेक)
धाबळीयाळी धाऊ, सांभळ अमाणी रावुं,
केताक गुण गावुं, रे मोगल माडी
           लळी लळी पाय लागु....(टेक)
दारीद दुःख दळजे, प्रघळा बिरदने पळजे,
वारु करेवा वळजे, रे मोगल माडी
           लळी लळी पाय लागु....(टेक)
गांडी आ देव गरजी, करू हाथ जोडी अरजी,
माडीनी जेवी मरजी, रे मोगल माडी
           लळी लळी पाय लागु....(टेक)
"दान अलगारी" रंग दे छे, भामीणां तोळा ले छे,
तुने उदो उदो के छे, रे मोगल माडी
           लळी लळी पाय लागु....(टेक)
रचना :- चारणकविश्री तखतदान रोहडीया (दान अलगारी)
टाईप ::- www.charanisahity.in
संदर्भ :- चरज थी अरज भाग-1 पाना नं-78 पर थी

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