परंपराना कोशेटामांथी चारण समाजे बहार नीकळवानी ताती जरुर...!
परंपराओ अहमनी पोषक बनी शके, परंतु कयारेय प्रगतिकारक बनी शके नहीं.
आपणुं बुद्घीचातुयॅ, वाकचातुयॅ अने तकॅचातुयॅ अतितना वतुॅळनी आसपास ज धूमराया करे छे.
मात्र अतितने वागोळ्या विना सांप्रतने समजीने स्वीकारवा सिवाय हवे कोई विकल्प नथी.
अतितनो अहम छोडी वतॅमाननी वास्तविकताने ओळखवानी छे. वतॅमानने ओळखी भविष्यने शणगारवानुं छे.
चारणकुळना आटला लांबा अंतराल उपर नजर नाखीशुं तो ऐ हकीकत निविॅवाद जोवा मळशे के परंपराना सजॅक चारणो आज मात्र परंपरावादीओ बनी रहया छे.
पहाडावाद, शाखवाद, परगणावाद, प्रदेशवाद अने रुढिवाद जेवा मिथ्यावादोना वाडाओमांथी मुकत थवानो समय हवे पाकी गयो छे.
' चारण समघारण ' नी सनातन समजण दढ कयाॅ विना छूटको नथी. चारण समाजे सूग राख्या विना ऐना विकास अने प्रगतिना परिबळो प्रत्ये दष्टि केळववी ज पडशे.
माँ भगवतीने प्राथना करीऐ के अमारुं अंतर अतितने याद करतुं रहे, अमारी आंखो वतॅमान सामे मंडायेली रहे अने अमारा पग भविष्यनी भूमि तरफ उपडता रहे ऐवी समजण अने सामथ्यॅ चारण समाजमां कायम प्रगटाव्या करे.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
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