*|| रचना- गंगामैया ||*
*|| कर्ता -मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*
*|| छंद - नाराच(चतुष्पदी) ||*
मोक्ष मुक्तदायनी सदाने शुद्ध मायली,
करत तप्प जप्पवट शंकरे समायली,
धरा धरे फेलायेली प्रचंड धार धारिणी,
नमामी मात गंग तु जगतपाप जारिणी(1)
करे किल्लोल ढंग डोल दैव वर सारिणी,
प्रसिद्ध वेण वायका पदम प्रथम धारिणी,
अप्रम ज्ञान शान ध्यान विमलवेद वारिणी,
नमामी मात गंग तु जगत पाप जारिणी,(2)
पाताल काल चाल जाल लाल रंग पायके,
कपिल क्रोध काल संग भु परे तू जायके,
हरे जले हजार साठ पुत्र तु बचावणी,
नमामी मात गंग तु जगत पाप जारिणी,(3)
वीरा जणी बणी घणी पवित्र पुत्र पारिणी,
सपूत भीष्म पोषिणी प्रकृत प्राण शोषिणी,
कथित मीत गंग हे खमा घणी खमा घणी,
नमामी मात गंग तु जगत पाप जारिणी,(4)
*🙏-----मितेशदान(सिंहढाय्च)-----🙏*
*कवि मीत*
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