भीतरनो वैभव...!
आपणे अंदरथी खाली थई गया छीऐ, मात्र बहारनो वैभव रहयो छे. वैभव तो अंदरनो होवो जोईऐ.
तुलसीदासजी केवळ पाननो लंगोट पहेरता ने मुंजना धासनी जनोई राखता. कपडां तो पहेरता ज नहोता. छतां रहीम द्वारा चित्रकूटमां अकबरनो पत्र आवतो हतो के, ' तुलसी को ऐक बार हमारे दरबारमें लाईऐ. '
त्यारे तुलसीजी कहेता, '' हमारे सरकारका दरबार तो बहोत बडा है. हम अकबर के दरबार में कयों जाये ? ''
आनुं नाम भीतरनो वैभव.
डो. राघाकृष्णनने कोईऐ पूछेलुं के, आजकाल लोको फरवा नीकळे त्यारे अाटला बघा सज्ज थई ने केम नीकळे छे ? त्यारे ऐमणे कहेलुं के, '' अंदर कंई नथी ऐटले बहारथी तैयार थवुं पडे छे. ''
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
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