जगतमां त्रण प्रकारना माणसो होय छे...!
ऐक गुलाबना छोड जेवा.
बीजा आंबाना वृक्ष जेवा.
त्रीजा फणसना छोड जेवा.
* गुलाबना छोडने फूल ज आवे, फळ न आवे.
समाजमां केटलाक लोको ऐवा होय छे. जे बोलता होय छे, कांई करता नथी.
केवळ फूल, फळ नहि. ''
* आंबाने मोर आवे ने फळ पण आवे.
समाजमां केटलाक लोको ऐवा होय छे. जे बोले ऐ करी बतावे छे. ''
* फणसना वृक्षने फूल नथी आवतां, सीघा फळ आवे छे.
समाजमां अमुक माणसो ऐवा होय छे. जे बोलता नथी, कायॅ द्रारा समाजने सीघुं परिणाम आपे छे.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें