मारी रचना केवो छे कवि जेमा कविनी सम्वेदना ने यथामति वाचा आपी छे
।। केवो छे कवि ।।
।। दोहा ।।
भगत चारण भाव थी,ज्यारे गरवा गातो गित,
एनी वाणी सुणी ने व्हालथी,ओल्या पाणाय करता प्रित, 1
अमर करे आयुष दिये, जगे जीवाड़े जेह,
सबद थी सजीवन करे,ऐ दिव्य कविवर देह, 2
दिये कीरति पाँखु दइ, अने उड़ता करे आकास,
अंखड रखे ओजस अपे, प्रवीण दिये परकाश,3
उग्यो आभमा ध्रूव तारो कवि छे,
ने बुडतानी माटे किनारों कवि छे,
रयण ने ऊजाळा देनारो रवि छे,
शंकर ना अंतर नो मन्तर कवि छे .1
डगावे त्रणे लोक हस्ती कवि छे,
नितरती हदा मा ऐ भगती कवि छे,
छे श्रध्धानु तीरथ ने विष्वासनु मन्दिर,
फेरवे द्वार प्रभु खुद ऐ मस्ती कवि छे .2
हस्या ने रडावे रडया ने हसावे,
कवि जाडवा झरणा ने बोलावे,
होकारां दीये प्हाड सामे हालिने,
व्हालप नी वेल्यु विकसती कवि छे .3
कवि खुद इस्वर पैगम्बर कवि छे,
दुनिया नो मोटो दिगम्बर कवि छे,
छे सबदोनो साधक आडम्बर विनानो,
तवंगर तणो पण तवंगर कवि छे .4
विकृति तणो अहि भक्षक कवि छे,
सु संस्कृति नो रक्षक सरक्षक कवि छे,
खूबी ग्यान थी भर्यो ग्नाता कवि छे,
विधाता तणो पण विधाता कवि छे .5
कविनी कविता करामत करे छे,
कविनी कविता मरामत करे छे,
कलेवर छे जूना कविता नवी छे,
रयण पर तपेलो कवि खुद रवि छे .6
कविये जगत ने कविता दिधि छे,
कलाकारे वाह वाहनी ताली लीधी छे,
व्यव्हार व्यवस्था ने व्यथाओंनी वच्चमा,
कविऐ तो आँहुनी प्याली पीधि छे .7
सबद ब्रह्म आगळ आतम ब्रह्म लड़े छे,
कविता जनमे त्यारे कवि खुद रडे छे,
तड़पतो रिबातो ने टुक टूक थातो,
कवि पीड़नी ने पीडामा पीडातो .8
सबद जन्म टाणे ई उन्डो उतरतो,
कविता आपी ने ऐ तरतो कवि छे,
कविता तो जन्म ल्ये छे वेदनामाँ,
न मरतो हिया बीच रमतो कवि छे .9
कवि ब्रह्म विष्णु शंकर ने जगावे,
ई धारे तो आ लोक त्रणने डगावे,
धरा पर तो भक्तीनी सक्ति छे एवी,
करे ज्या ज्या द्रष्टी त्या स्रुष्टि दिखावे .10
प्रशुतानी पीड़ा थी पीड़ा वधू छे,
ने कविये तो थोड़ा मा किधु घणु छे,
कवि नी कविताआगळे परमाणु,
अणु बोम्ब जेवा तो जाजा अणु छे .11
अंकाई नई कवि के कवितानी किंमत,
कवि मा छे ऐवी बीजे क्या छे हिंमत,
छे हिमालयथी टाढो ने करुणा थी कूणो,
कविनी कवितामा लागे नय लुणो .12
कवि जाणतो होय अजाणीय भाषा,
हरि हर ने ब्रह्मा करे जेनी आशा,
कवि छे वसन्त ने सुगन्ध अर्पनारो,
खमीरातुना मन्त्रने ई फूंकनारो .13
मामेरा भर्या नरशी माटे ई मोंघा,
छता सब्द आगळ हता सांव सोंघा,
कवि उपरे शारदा हेत अनोधा,
कवि सब्द शब्दे पिलावे पयोधा .14
कविता न मोलाय हजु कोई हाटे,
कविता न तोलाय हजु कोई कांटे,
कविता तो निकळे रिबाता दिलेथी,
कविता मळे नई कई वाटे के घाटे .15
कवि उडतो होय आकाश माथे,
कविना चरण ने तो पाणाय प्राथे,
भाषा मौन नी जाणनारो परिब्रह्म ,
हजारों सिध्धि छे कविना ज हाथे .16
कविनी कविता हंमेश होय ताजी,
छे शारद ज्या राजी नथी धूड़ बाजी,
कवि नी आ मिल्कत महालयथी मोटी,
कविता कदी नव होय रोजी रोटी . 17
कविता तो होय साधना ने समाधि,
कविता छुडावै घणानी उपाधि,
कविता कविये निज रदयेथी रान्धी,
प्रभु गान माटे कविता प्रसादी .18
मरी जाय पोते बिजाने जीवाड़े,
कविता पकवतो रदय ना निम्भाड़े,
कवि भाग्य ना बन्ध होवे कमाडो,
छता के रोमें रोम प्रभु ने रमाडो .19
केवो छे शारद नो कविने खजानो,
खिल्यो बाग भारे अढारेय मजानो,
सु सुगन्धि वायू ने शब्दे सुजानो,
पीडामा छे आनन्द कवि ने पूजानो .20
कवि होय साचो न वेचे कविता,
रळें नई कदी पाप कर्मे पलिता,
कवि ल्यावे सँतोष रहि ने अलूणो,
कवि तो उतारी दिये सर्व ऋणों . 21
कविता उतरे त्यारे जुरतो कवि छे,
ने उतर्या पछि तो नितरतो कवि छे
भीजवी दये भितर ने भीतरनी कई ने,
भलप थी भरेलो भभकतो कवि छे .22
मधुडो " प्रवीण "के कवि साचो द्रष्टा,
अने एथी वधु कहु तो छे ईष्ट निस्ठा,
सृस्टि तणी सृजना नो ब्रह्म स्रस्ठा,
कवि भेळो होय एनी वधति प्रतिष्ठा .23
रचना : कवि प्रवीणभा हरूभा मधुडा
मोबाइल 97239 38056
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