. *|| धुड धोबे धुतकार ||*
. *रचना : जोगीदान गढवी (चडीया)*
गायुं उठवी गांमनी, बांधल उंचा बार
जग मां ऐने जोगडा, धुड धोबे धुतकार. ०१
रसण कथायुं रामनी, उर भर्यो अंहकार
जारो वा मुख जोगडा, धुड धोबे धुतकार. ०२
कहळा आखा कटम थी, खोटो राखे खार
जाय परो ई जोगडा, धुड धोबे धुतकार. ०३
सगां मळे ज्यां सामटां, त्यांय करे तकरार
जड मतीया ने जोगडा, धुड धोबे धुतकार. ०३
पिये मदीरा पालीयुं, अखज करे आहार.
जांण पतित सुं जोगडा, धुड धोबे धुतकार. ०४
अवगण गण पर आचरे, उपकारे अपकार
जाय भुली गण जोगडा, धुड घोबे धुतकार. ०५
विनय भुली ने वावरे, अधम भर्या उदगार
जण कपटी गण जोगडा, धुड धोबे धुतकार.६
लीधुं दीये नई लालची, नफट बने नादार
जाय परो कर जोगडा, धुड धोबे धुतकार. ०७
सगा घणीं ने छेतरे, वपू करत व्यापार
जहर समी ऐ जोगडा, धुड धोबे धुतकार. ०८
रीत भुली निज राखतो, नींच कुलिन घर नार
जात हींणो गण जोगडा, धुड धोबे धुतकार. ०९
नजर न नोंधे नजर सुं, भणे वात दई भार
जे लंपट गण जोगडा, धुड धोबे धुतकार. १०
वात पुरी समज्या विना, हसे तोय तम हार
जुठ कपट गण जोगडा,धुड धोबे धुतकार. ११
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