*शब्दालंकार-सवैया*
या मगरी मगरी तगरी, नगरी, नगरी सगरी बगरी है,
वाट परी डगरी डगरी,सगरी सगरी कगरी अगरी है;
शीश भरी गगरी गगरी, पगरी घुघरी उगरी भूगरी है,
ब्रह्ममुनि द्रगरी फगरी, लगरी लगरी रगरी रगरी है. ।। 1।।
*रचियता - ब्रह्मानंद स्वामी*
हकीकतमां ऐम कहे छे के, ऐक समये गोपीओऐ माताजी जशोदाजीनी आगळ जईने फरीयाद करी के, तमारा कानजी वृन्दावनमां एमने हेरान करे छे, माटे तमो तेने ठपको आपो.
*भावार्थ :-*
आ मारगे में तेओने तगडी तोये तेओ नगरीमां पेठी नहीं; ते सघळी (बगडी) खोटी छे; ते त्यांथी रस्ते पडीने डगलुं डगलुं भरती हती; पण ते पंखीणी मांनी पंखीणी जेवी अने कागळीओमां आगली ऐटले आगळ वधे ऐवी छे; माथे गागर भरेली हती अने धीमे धीमे पगलीओ (पगलां) भरती हती; तेना पगना झांझरनी घुघरीउं उछळीने (तुटी जवाथी) 'भू' भोंय ऊपर पडी गई छे, (ते अमो वीणीऐ छीऐ) ब्रह्मानंद स्वामी कहे छे के, भगवाने कह्युं के, नेत्रनी दगाखोर मने फगी जतां लगार में (रगडी छे) हेरान करी छे.
*संदर्भ :- ब्रह्मानंद स्वामी जीवन दर्शन (पाना नं-179 परथी)*
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