*||रचना:आवड़ माताजी नो छंद ||*
*||छंद- दुर्मिळा(सप्तक)||*
*||कर्ता-मितेशदान महेशदानदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*
जननी जपु जाप नमू जगदंब अजा मात आवड़ आदि अनंत,
धरी अवतार बणी रूप नागण आठम सात शकत्तिय खंत,
पुकार सुणी साद मामड प्राथ रही खोरडे आई खेल रमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे, *(१)*
खलके धर गेल खेलंतिय प्रांगण सातेय सोम सजाव लगे,
छलके मुख हेत छबी सुख दाखण,मामड चित्त उजास जगे,
कर धारण नाग वलोणाय भम्मर घम्मर घम्मर छाय जमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमें *(२)*
काळ थंभ गयो तिमिराण उजागर थंभण भाण भु थाप दिये,
कळके दळ आकाश संग दिगंबर द्रिसत खोडिय कुम्भ लिये,
जल पान अमृत कियो मुख मेरख जीवन तारणहार तमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(३)*
जगराय रखी रिझ दाखत राज प्रसन्न तनोटाय मात जयो,
हुण काट सेना कुळ तेमड़ डारण भोय वधेरण जात हयो,
घंटीयाल हण्यो हळेळाट असुराण हाक हुकाटेय आण खमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(४)*
त्रिलोकिय तात बणी खप्पराळीय जब्बर जोगण रास रमे,
व्रहेमांड फरे नव लाखाय माडीयू नाद गुंजावत शोर भमे,
धधकावत पद पड़े धर अंबर,चौद भुवन श्रृंगार समे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(५)*
भळके जब जंग लगे झट्ट खैखट्ट खप्पर खांडेय शोर मचे,
कर चुड़ खणंकित खेलण युद्ध रमे जगराय रक्त्त रचे,
धड़ काटन छेद दियो मुंड मारण शुंभ निःशुंभ
हण्यो रणमें,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(६)*
उजळा हिये हार बणाव सूखा रूप कुंडल कान धरु करणे,
सघळा वरु वाट तणा मत पाई बणु सत चारण तु शरणे,
मिहिराण ते'मिर समीर घडो गुण चारण चित सरु मनमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(७)*
*🙏~~~मितेशदान(सिंहढाय्च)~~~🙏*
*उजळा हिये हार बणाव सूखा रूप कुंडल कान धरु करणे,*
*अर्थ:अमारा आ चारणी रिदय ने मा तमे उजळा बनावो अने सुख रूपी हार डॉक मा ने कान मा कुंडल स्वरूप गुण परोवो,
*सघळा वरु वाट तणा मत पाई बणु सत चारण तु शरणे,*
*अर्थ: अमारा दरेक दुख ने भूली ने सदाय साची वाट पकड़ी ने जगदम्बा तारो मत जे हसे,जे ते धारयु हसे तारा बाळको माटे ते अमे स्वीकारी लेसु,अने सत्य चारण बनी राहेवानो ध्येय राखिस ने सदाय तारा शरणे ज रहीस,
*मिहिराण ते'मिर समीर घडो गुण चारण चित सरु मनमे,*
*(अहीं तिमिर शब्द ने बे अर्थ मा लै ने ते'मीर कर्यो छे,)*
*(मीर मतलब अमीर,धनवान अने तिमिर एटले अंधारु,)*
*अर्थ:मिहिराण:,सूरज,(जे तेजस्वी छे तेनु तेज),तिमिर:अंधारु,(जे गाढ़ शांतिथी घेरायेल छे तेवु,) अने समीर: पवन(जेनी गति अने शकत्ति अपार छे ते)
है मा आ त्रणेय ना गुण मारा मा संचित कर के जेथी हु समाज मा चारण छु तेवा गर्व थी सूर्य जेवु तेज राखी सकू,जेथी हु गाढ़ तिमिर नि जेम शांत मन थी दरेक परिस्थिति मा धीरज धरि शकु,अने पवन जेवी गति संचित करु के जेथी हु मारी उत्तरोत्तर प्रगति करी मारा समाज अने मारा जीवन ने उजागर करि शकवा सक्षम बनु,
*मिहिराण: मि*
*ते'मीर : ते*
*समीर : स्*
🙏~~~ *कवि मीत* ~~~🙏
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