प्रथम हिन्दुवादी कवि दुरसा जी आढा
दुरसाजी आढा का जन्म वि स १५९२ माघ सुदी चवदस को मारवाड राज्य के सोजत परगने के पास धुन्दला गांव में हुआ।इनके पिताजी मेहाजी आढा हिंगलाज माता के अनन्य भक्त थे जिन्होने पाकिस्तान के शक्तिपीठ हिंगलाज की तीन बार यात्रा की।मां हिंगलाज के आशीर्वाद से उनके घर दुरसाजी जैसा कवि का जन्म हुआ।गौतमजी व अढ्ढजी के कुल में जन्म लेने वाले दुरसाजी आढा की माता धनी बाई बोगसा गोत्र की थी जो वीर व साहसी गोविन्द बोगसा की बहिन थी।भक्त पिता मेहाजी आढा दुरसाजी की छ वर्ष की आयु में फिर हिंगलाज यात्रा पर चले गये इस बार इन्होने संयास धारण कर लिया। कुल मिलाकर दुरसाजी आढा का बचपन संघर्ष व अभाव ग्रस्त रहा। बगडी के ठाकुर प्रताप सिह ने इनकी प्रतिभा प्रभावित होकर अपनी सेवा में रखा यही पर इनकी प्रारम्भिक शिक्षा हुई ।आपको अपने दीर्घ जीवनकाल में अपरिमित धन ,यश एवं सम्मान मिला।
दुरसाजी को प्राप्त सांसण में जागीर धुंदला ,नातल कुडी,पांचेटिया, जसवन्तपुरा,गोदावास,हिंगोला खूर्द,लुंगिया,पेशुआ,झांखर,साल,ऊण्ड, दागला,वराल,शेरूवा,पेरूआ, रायपुरिया,डूठारिया,कांगडी,तासोल,सिसोदा ।इनके अलावा बीकानेर के राजा रायसिंह ने इनको चार गांव सांसण में दिये थे जिनकी पुष्टि बीकानेर के इतिहास से होती है।
इनाम के रूप नकद राशि
करोड पसाव पुरूस्कार
१करोड पसाव रायसिंह जी बीकानेर ने
१ करोड पसाव राव सूरताण सिरोही ने
१ करोड पसाव मानसिह आमेर ने
१ करोड पसाव महाराणा अमरसिंह मेवाड ने
१ करोड पसाव महाराजा गजसिंह मारवाड ने
१ करोड पसाव जाम सत्ता ने
३ करोड पसाव अकबर बादशाह ने दिये जिन्हे जनकल्याण में खर्च किये अर्थात् तालाबो, कुओ ,बावडियों इत्यादि के निर्माण में व्यय किया।
लाख पसाव पुरूस्कार
दुरसाजी को कई लाख पसाव मिले जिन्हे सिरोही महाराव राजसिंह,अखेराजजी,मुगल सेनापति मोहबत खान व बैराम खान से प्राप्त हुए ।
दुरसाजी आढा ने पुष्कर के चारण सम्मेलन में १४ लाख रूपये खर्च करके समाज हित का कार्य किया।
विरच्यो प्रबंध वरणरो,
सूरज शशिचर साख।
तठै खस्व दुरसा तणा,
लागा चवदा लाख।।
आउवा धरणा के अग्रज
दुरसाजी आढा के नेतृत्व में आउवा का धरणा वि स १६४३ के चैत्र मास के शुक्ल पक में हुआ।इनके धरणे में इनके मुख्य सहयोगी अक्खाजी,शंकरजी बारहठ,लक्खाजी आदि समकालीन चारण थे सबसे ज्यादा चवालीस खिडिया गोत्र के चारणों शहादत दी।दुरसाजी आढा ने गले में कटारी खाई। धागा करने के बाद भी देवी कृपा से वे बच गये। उन्होने मोटा राजा उदयसिंह को दिल्ली के दरबार में सरेआम लज्जित किया।गले में कटारी का घाव खाने से दुरसाजी के गले की आवाज विकलांग हो गई। इस पर अकबर ने पूछा कि आपकी आवाज कैसे बिगड गई ? तब उन्होने कहा कि कुत्ते ने काट लिया था इतना बडा कुत्ता कैसे हो सकता है तो उन्होने मोटा राजा की तरफ संकेत किया।
दुरसाजी आढा के निर्माणसिरोही
पेशुआ
१ दुरसालाव पेशुआ
२ बालेश्वरी माता मंदिर
३ कनको दे सती स्मारक
४ पेशुआ का शासन थडा
झांखर
१ फुटेला तालाब
२ झांकर का शासन थडा
रायपुरिया
१ बावडी का निर्माण जो मेवाड रियासत का सांसण गांव था जहां से इनके लिए पांचेटिया (मारवाड )में पानी पहुचता था क्योकि आउवा धरणे के बाद उन्होने मारवाड के पानी त्याग कर दिया था
पांचेटिया
१ किसनालाव
२ शिव मंदिर
३ दुरसश्याम मंदिर
४ कालिया महल
५ धोलिया महल
हिगोंला खुर्द
१ हिगोंला के महल
२ हिगोंला का तालाब
अचलेश्वर शिव मंदिर - आबू पर्वत के अचलेश्वर जी के शिव मंदिर में जहां शिवजी के अंगूठे की पूजा की जाती है वहां मंदिर में शिव जी के सामने नंदी के पास दुरसाजी आढा की पीतल की मूर्ति लगी हुई है जिस पर लगे लेख के अनुसार इनकी जीवित अवस्था में इस मूर्ति की स्थापना हुई।ऐसा सम्मान किसी कवि को नही मिला।
पद्मनाथ मंदिर सिरोही- पैलेस के सामने इस मंदिर के बाहर हाथी पर सवार इनकी मूर्ति भी बडी महत्वपूर्ण है जो विष्णु मंदिर के बाहर लगी हुई है जो सदियो से उनके अतुल्य सम्मान का प्रतीक है।
दुरसाजी आढा का देवलोक गमन वि स १७१२ को होना माना जाता है।इस प्रकार १२० वर्ष की दीर्घायु उन्होने पाई। इस दीर्घायु में उन्होने अतुलनीय साहित्य का सर्जन करके महाराणा प्रताप ,सिरोही के राव सूरताण व मारवाड के राव चन्द्रसेन व नागोर के अमरसिंह राठौड पर काव्य रचना करके इन्हे इतिहास व साहित्य में अमर कर दिया उन्होने महाराणा प्रताप बिरद छिहत्तरी की रचना की जो डिंगल की सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है।
उनका कहा छप्पय जो इस प्रकार जो उन्होने ने अकबर के सम्मुख कहा था।
अस लेगो अणदाग, पाघ लेगो अणनामी।
गो आडा गवडाय, जिको बहतो धुरबांमी।।
नवरोजे नह गयो, न गौ आतसा नवल्ली।
न गौ झरोखां हेठ, जेथ दुनियांण दहल्ली।।
गहलोत राणा जीती गयो, दसण मूंद रसणा डसी।
नीसास मूक झरिया नयण, तो म्रत साह प्रतापसी।।
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