प्रभु ने पूज्या थी शु थाय
रचयिता: राजकवि पिंगलशीभाई पाताभाई नरेला. भावनगर
राग: धन्या श्री... त्रिताल
प्रभु ने पूज्या थी शु थाय, मेल भर्यो मनमाय.... प्रभु ने.. टेक
शीयाला मा नित्य सवारे, नीर ठंडा थी नाय,
भ्रात सगा नु सारू भाले तो, लागे ऊरमा लाय.....प्रभु ने. टेक...1
चोखा कंकु निवेद साकर, ठाकर सेवा थाय,
चाकर थय ने धणी नु चोरे, खोटु बोली खाय......प्रभु ने. टेक...2
भेळा थय ने राते भजनों, गांजो पिने गाय,
ध्यान धरे खोटा धंधा मां, ललनामा ललचाय.......प्रभु ने. टेक...3
जुवो प्रभु छे अंतरयामी, छेतर्यो नव छेतराय,
पिंगलसी कहे पाखंडीनो, जीव असुर गति जाय..... प्रभु ने. टेक..4
अनिरुद्ध जे. नरेला ना जय माताजी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें