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21 सितंबर 2017

हाल्यो सिमाळे माणशी रे लोल रचना :- राजभा गढवी (गीर)


*हाल्यो सिमाळे माणशी रे लोल....*

*रचना :- राजभा गढवी (गीर)*

के..... दिधुं छे. कांई (2)
         आ आखुं उजळु चारण कुळ जो...
आ मरवा हाल्यो छे. हिमाळे माणसी रे....लोल.....1

हे ऐने नहोतो मांडवडे मिंडोड बाध्या रे लोल
       मरवा हाल्यो विर जो आ मरवा
हाल्यो सिमाळे माणसी रे लोल....(2)...2

हे ऐणे काश्मिर धिंगाणे सोपीयो रे लोल.....
सरहदे कांई डणकयो साचो विर जो आ...
      मरवा हाल्यो सिमाळे माणसी रे लोल.....(3)

हे.... ऐणे माता धरती ऐ... तेळा मोकल्या रे...लोल
हवे साचवी लेजे माणसी आपणी शान जो आ
      मरवा हाल्यो सिमाळे माणसी रे...लोल...(4)

हे... ऐणे भलकारा देती कच्छनी भोमीयुं रे..लोल
वधेरशे जाजरे मात जो आ मरवा
     हाल्यो सिमाळे माणसी रे..लोल (5)

हे....माता धरतीनो नानोशेरा पोर छे रे... लोल
सौथी हरख्यो डाडो शिव जो आ मरवा हाल्यो
       सिमाळे माणसी रे...लोल...(6)

सौंनी सलामुं तुंने साभळी रे...लोल
रुदिये जो वंदे चारण "राज" जो आ मरण
      हाल्यो सिमाळे माणसी रे...लोल ...(7)

रचना :- राजभा गढवी

टाइप :- www.charanisahity.in

टाइप मां भूल होय तो माफ़ करजो अने सुधारी ने वांचवा विनंती

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