*||रचना : भूमिअष्टकम् ||*
*||कर्ता : मितेशदान गढ़वी (सिंहढाय्च) ||*
*||छंद : भुजंगी ||*
|| दोहा ||
*अळ्या तुज उपकारने,सिद ने भूले सउ,*
*मात पिता सम तु महा,दन मीत वंदन दउ*
|| छंद भुजंगी ||
सुधा गण समिता अमिता सुरम्मी,
उधावण अखिता अभय नाभअम्मी,
विशाला विमल्ला पविता विधाता,
दयादन नमन जन धरण धन्न दाता,(१)
अखर बो धरा ध्यान राखंत आपे,
नखर को तरु म्यान दाखंत नापे,
महाविश्व व्यापं धरे भार माता,
दयादन नमन जन धरण धन्न दाता,(२)
पुराणं भजे वेद जाणं प्रमत्ता,
धरी शेष मुंडम बणे प्राणदत्ता,
समा शोभनी लील वरणी सुजाता,
दयादन नमन जन धरण धन्न दाता,(३)
अमानत उपाजन अनंतं अमीदा,
सुहावन करुणा अरुणा समीदा,
हरंतम तृणा सम्मणा शीत हाता,
दयादन नमन जन धरण धन्न दाता,(४)
अतितं पुठे धर कूरम स्त्राव अरपी,
पतितं त्रुठे विश्व में भाव हर पी,
तुहि चौद रत्नम उपाजन्न त्राता,
दयादन नमन जन धरण धन्न दाता,(५)
जयो सिद्ध सर्वेश्वरी भू जगत्ता,
मयो पाप हरणी कुखे लेव मत्ता,
प्रयोध्यान सुध्यान विद्यान प्राता,
दयादन नमन जन धरण धन्न दाता,(६)
भयो सम्प्रधानं दियो विश्व भावे,
गुरू वेद विद्वान तो गुण गावे,
महा धार आधार तू सार माता,
दयादन नमन जन धरण धन्न दाता,(७)
अळ्या उपकारा कथु शु तिहारा,
भयो जन्म धन्य वही हेत धारा,
वहे प्रेम वृति *मीते* मन विधाता,
दयादन नमन जन धरण धन्न दाता,(८)
*🙏---मितेशदान(सिंहढाय्च)---🙏*
*कवि मीत*
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