. || वाली राम विवाद ||
. गीत : सांणोर
. रचना : जोगीदान गढवी (चडीया )
. गीत : सांणोर
. रचना : जोगीदान गढवी (चडीया )
. रुजु रदय राखी रट्ये, असुर थता आबाद.
. जो ईक नोखो जोगडा, वाली राम विवाद.
. जो ईक नोखो जोगडा, वाली राम विवाद.
कहे वाली सूंणो वात राघव तमे, अमे तो वांनरा जात वनका.
तमेतो त्रिलोकी नाथ तारक छता,मेल मानव धर्या देह मनका.
कियो अपराध ना कोय मैं आपनो, तोय कां दगो ते देव करीयो.
बिना पडकार तें मारीयो बांदरो, हरी कां हरी नो प्रांण हरीयो.||01||
तमेतो त्रिलोकी नाथ तारक छता,मेल मानव धर्या देह मनका.
कियो अपराध ना कोय मैं आपनो, तोय कां दगो ते देव करीयो.
बिना पडकार तें मारीयो बांदरो, हरी कां हरी नो प्रांण हरीयो.||01||
मारवुं पीठ पर ऐ न मरदानगी, भड थई रघु कुळ रीत भुल्यो.
आ नतुं युद्ध को अजोधा उपरे, तोय कां मारवा राय तुल्यो.
अकारण पहुडां आंम जो मारशो,पछी तो रहातळ जाय परथी
अडे ना तमारा कुळ ने दाग आ, देव हुं पुछतो रह्यो ऐज डरथी.||02||
आ नतुं युद्ध को अजोधा उपरे, तोय कां मारवा राय तुल्यो.
अकारण पहुडां आंम जो मारशो,पछी तो रहातळ जाय परथी
अडे ना तमारा कुळ ने दाग आ, देव हुं पुछतो रह्यो ऐज डरथी.||02||
सीता ने छेडतल जयंत नो मा जण्यो, भाळतां रदय मां थाय भडको.
नाम वाली छतां रीत्य वाली नही,ईन्द्र नो पुत्र तुं अहम अडको.
अनूज सूग्रीव नी अबळ अरधांगनी, रैयत नी बेटीयूं बान राखे
अधीक अन्याय तूज वध्या अंगद पितु, सगो साढु कहे केम साखे.||03||
नाम वाली छतां रीत्य वाली नही,ईन्द्र नो पुत्र तुं अहम अडको.
अनूज सूग्रीव नी अबळ अरधांगनी, रैयत नी बेटीयूं बान राखे
अधीक अन्याय तूज वध्या अंगद पितु, सगो साढु कहे केम साखे.||03||
अस्तना सुरज ने अरघ तुं आपतो, अहूरी रीत नी अबख अमने.
जेह कारण दीठुं मुक्ख ना जोगडे, जाड नी ओथ थी कह्युं जमने.
पालव्यो तने ने झुलाव्यो पारणे, ई अहल्या मात थी अलग आव्यो.
जनम भोमी अरु तजी तें जणेता, लाज ना हजी तुं केम लाव्यो.||04||
भाई ने भलेतें वनो वन भाटक्यो, भले दाराय तुं भाम भणीयो.
जात वानर गणी ऐब ई जोवुं ना, बळुको भले तुं खुब बणीयो.
जे घडी अहल्या जोई में जोगडा, राम के रदय मां वात रणकी.
मारवो ऐह ने मूकेय जे मात ने, तेज आ धनुष नी तणस टणकी.
||05||
जेह कारण दीठुं मुक्ख ना जोगडे, जाड नी ओथ थी कह्युं जमने.
पालव्यो तने ने झुलाव्यो पारणे, ई अहल्या मात थी अलग आव्यो.
जनम भोमी अरु तजी तें जणेता, लाज ना हजी तुं केम लाव्यो.||04||
भाई ने भलेतें वनो वन भाटक्यो, भले दाराय तुं भाम भणीयो.
जात वानर गणी ऐब ई जोवुं ना, बळुको भले तुं खुब बणीयो.
जे घडी अहल्या जोई में जोगडा, राम के रदय मां वात रणकी.
मारवो ऐह ने मूकेय जे मात ने, तेज आ धनुष नी तणस टणकी.
||05||
(जे रामने लक्ष्मणे कह्युं के आ सोनानी लंका आंम आपी देवाय ? त्यारे राम कहे के ..अपी स्वर्णमयी लंका नमे रोचते लक्ष्मणः जननी च जन्मभुमी स्वर्गादपी गरीयसी...
ऐ रामे वाली ने मारवा कदाच ऐ कारण बतावेल के हे वाली तें जे पण कर्मो कर्यां ते तारा वानर जाती ना जंगली संसर्ग मां होई अने शक्ति ना घमंडे करीने होय तेम गणीं माफ कराय..पण ऐकतो जे जयंते सीता ने कागडो बनी दुभवी तेनो तुं सगो भाई..वळी तुं असुरी रीत थी अस्त थता सुर्य ने वंदना करे छे (वाली संध्या वंदना करतो) तथा तें तने पाळी पोषी ने मोटो करनार माता अहल्या ने ज्यारे सल्या बनीने समय व्यतित करवो पड्यो त्यारे तुं जोवाय नथी गयो अने अहीं रंगमोल मां राचतो हतो..ऐटले तुं अहंकार ना अवतार रुप तुं जीवीत होय त्यारे तारुं मोढुं जोवुं ऐय पाप हतुं माटे हुं तारी सामे न आव्यो..अने तें भले भाई ने वनोवन भटकाव्यो के भले तें बीजा अनाचार आचर्या पण ज्यारे तें मॉं ने विकट समय मां ऐकली मुकेली जोई त्यारथीज तारा मृत्यु माटे मारा धनुष्य नी तणस रणकी रही हती...माटे हण्यो ..
(जोके पछी ताराये श्राप आप्यो के जेम तमारे हाथे मर्यो तेम तेना हाथे तमे मरशो...जे श्राप कृष्ण अवतार मां पीछो करतो पोहचेल अने सत्य ठर्यो) ...आंम राघवे वाली ना प्रसंग थी जे मातृ ऋण थी भागे छे ऐ ईश्वर नो दोषीत छे ऐवुं जणाव्युं )
ऐ रामे वाली ने मारवा कदाच ऐ कारण बतावेल के हे वाली तें जे पण कर्मो कर्यां ते तारा वानर जाती ना जंगली संसर्ग मां होई अने शक्ति ना घमंडे करीने होय तेम गणीं माफ कराय..पण ऐकतो जे जयंते सीता ने कागडो बनी दुभवी तेनो तुं सगो भाई..वळी तुं असुरी रीत थी अस्त थता सुर्य ने वंदना करे छे (वाली संध्या वंदना करतो) तथा तें तने पाळी पोषी ने मोटो करनार माता अहल्या ने ज्यारे सल्या बनीने समय व्यतित करवो पड्यो त्यारे तुं जोवाय नथी गयो अने अहीं रंगमोल मां राचतो हतो..ऐटले तुं अहंकार ना अवतार रुप तुं जीवीत होय त्यारे तारुं मोढुं जोवुं ऐय पाप हतुं माटे हुं तारी सामे न आव्यो..अने तें भले भाई ने वनोवन भटकाव्यो के भले तें बीजा अनाचार आचर्या पण ज्यारे तें मॉं ने विकट समय मां ऐकली मुकेली जोई त्यारथीज तारा मृत्यु माटे मारा धनुष्य नी तणस रणकी रही हती...माटे हण्यो ..
(जोके पछी ताराये श्राप आप्यो के जेम तमारे हाथे मर्यो तेम तेना हाथे तमे मरशो...जे श्राप कृष्ण अवतार मां पीछो करतो पोहचेल अने सत्य ठर्यो) ...आंम राघवे वाली ना प्रसंग थी जे मातृ ऋण थी भागे छे ऐ ईश्वर नो दोषीत छे ऐवुं जणाव्युं )
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