भवानी अष्टक
दोहो
व्यापक तुंम विश्वेश्वरी शक्ति रूप सब ठोर
प्रेम रूप परमेश्वरी मात बसहुं चीत मोर
सदा शक्ति दा शान्ती दा पुजेउ पंकज पाद
भवानी भावे भजु अंत न याको आद
छंद भुजंगी
अनादी अनंत अनुपं अखंडी
परं आनंद मे प्रतिभा प्रचंडी
परी पुर्ण कामा वरं प्रिय दानी
भजुं भंजनी भीड भावे भवानी
सदामुल मंगल जगे दिव्यजोती
हमेशा हुलासीत हानीत होती
परम प्रेम भीने मुखे मुसकानी
भजुं भंजनी भीड भावे भवानी
निपावे खपावे निभावे सभिको
पराभेद तेरो न पावे कभीको
मति है यथा वे तथाहे बखानी
भजुं भंजनी भीड भावे भवानी
तेरे तेज हिसुं रवि नीत तप्पे
सुरा सुर सेवे डरे काल डप्पे
हुकम सीरधारे जोरी जुग पानी
भजुं भंजनी भीड भावे भवानी
तुही जोगणी जग थापे उथापे
रमे आप हिसुं अहर नीस आपे
धरंती धरानभ पवन आगपाणी
भजुं भंजनी भीड भावे भवानी
अरूपा करे रूप क्रिडा अनेके
रमे इश्र्वरी तुं अणु ऐक ऐके
करंती कला सो सके कोन जानी
भजुं भंजनी भीड भावे भवानी
गगन सागरे धुधवे धोर नादे
तडीता खने खेल खेले अषादे
संध्या सींगारो सजंती सुहानी
भजुं भंजनी भीड भावे भवानी
करे साद माणेक मा कान देजे
अविद्या मेरे उरसे दुर कीजे
रखीजे सरन मे सदा बाल जानी
भंजु भंजनी भीड भावे भवानी
छप्पय
जानी अपनो बाल करो रखवाल कृपाली
जानी अपनो बाल हरो दुःख दीन दयाली
जानी अपनो बाल शीशुकी टेर सुनीजे
जानी अपनो बाल सदानंद सरने लिजे
निज बाल जानी नारायणी देवी अभय वर दिजीये
भगवती माणेक भणे करूणा हमपर कीजीये
(कवि श्री माणेक थायाॅ जसाणी-(झरपरा - कच्छ)
-हरि भाइ गढवी -ववार कच्छ नी पोस्ट //मोरारदान सुरताणीया)
वंदे सोनल मातरम्
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