ऐरे गंग मात (गंगा मया नु कवित )
रचयिता : राजकवि पिंगलशीभाई पातभाई नरेला. भावनगर
॥ कवित ॥
अमृत की ल्हेरी मन महेरी हुलास वारी ,
अनुकंपा गेहरीमें सेवक सुधार ले,
मुक्तिकी दाता जगतमाता हो विख्यात आप ,
चरन सुख साता नर सिंधु जल तार ले ,
हरकी सनेहा तुं हरि देहा रुपधारी ,
बालककुं प्रतिपाल कालसे उगार ले ,
तुही हो बड़ासे बडी, देखले बडाई तेरी ,
ऐरे गंग मात , मेरी सवेरी संभाळ ले......1
करुनाकर सृष्टिमें दीपत साक्षात देवी ,
चाहे गतीबो जील उदक जटपट रे ,
किरत बनाव चाहे कर रे बनारसिकी ,
करी सेवा भवको दुर्गम पंथ कट रे ,
आदि अंत मधय मात अधम ओधारनी हे ,
हाजर रे सुकृतकर दुकृतसे डर रे ,
बेठ ऊठ चालनमें मनमें अखंड नाम ,
ऐक टेक गंग गंग रसनामें रट रे.........2
आनंद सुमेरु हुते प्रगटी हजार धारा ,
सातरूप सातरूपी वेदमें बखानी हे,
निर्मल नवखंडन में किल्लोलि ब्रह्मनंडन में ,
वहेती अखंड वेग सुभर भरानी हे ,
लखी नाग मंडळ में ब्रह्मके कमंडल में ,
जहां जैसी मानी तहां तैसी दरसानी हे,
पानी को परस होत पुनर्भव भटके ना ,
पानीमें प्रभुताई प्रगट निशानी हे.......3
साची जुग जननी ते काशीमें निवास कीनो ,
सदा सुख राशी ते उदासी मिटे मनकी,
पापकी विनाशी आप प्रकाशी प्रताप तेज,
परसे प्रवासी तो उजासी होत तनकी ,
नाथ कैलासी विश्व शिरसी विलासी नीर,
तब जासी चोरासीकी फांसी निज जनकी,
गंगा गुन गासी तब थासी नर पासी सुख ,
देवी अविनासी ऐक आसी दरशनकी..........4
संकलन: अनिरुद्ध जे. नरेला. भावनगर
जय माताजी.. जय गंगे मैया नी🌹🌹🙏🙏
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