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"जय माताजी मारा आ ब्लॉगमां आपणु स्वागत छे मुलाक़ात बदल आपनो आभार "
आ ब्लोगमां चारणी साहित्यने लगती माहिती मळी रहे ते माटे नानकडो प्रयास करेल छे.

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24 नवंबर 2016

काठजी कुनी

ऐक कच्छी रचना मनुष्य देह मां जन्म
लीधेल मानवी माटे लखवानो प्रयास..
भुल-चुक क्षमा 🙏🏻 जय भगवती

           *काठजी कुनी*

काठजी आय कुनी,ही चडधी हेकार
पचाय गेन पुन नेंका,दजी रोने यार
चुल आय ही आकरी,हरी के संभार
मुंग जेडो मन,आश चोखे जी यार
               काठजी आय कुनी.......

कर्म जो पानी वेज,ने मीठो रती भार
तप कर ग्यानजो त रजी रोंधी यार
भाव से पिरसांधी,किंक जुडधो सार
नेंका पाछो फरी,अचनो पोंधो यार
               काठजी आय कुनी.......

ही समो ही वेणा टेम,मलधो न ब्यार
ठामडो ता बणधो,वानी रोंधी यार
तेलां करे"देव"चेतो,वाट हाणे ब्वार
हाणे फरी न अचने मनुष थी यार
               काठजी आय कुनी.......

  ✍🏻देव गढवी
नानाकपाया-मुंदरा
         कच्छ

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