*|| भजन ||*
*|| रचना- धुळे गयो अवतार ||*
*|| ढाळ - राम ने सिद ने भुली जाय ||*
*|| कर्ता - मितेशदान गढवी (सिंहढाय्च) ||*
जगत जनम नो सार न जाणे,
भुली गयो संसार
ए नो, धुळे गयो अवतार,(टेक.)
करम धरम नी टेक न जाणे,
इ जाणे मदीरा पान,
दुष्ट व्रृती ने अंतर धारी,
सरतो दुरवय्वहार,
ए नो, धुळे गयो अवतार (१)
मानवता ना गुण ना जाणे,
इ जाणे क्रोध कंकास,
कुथली थी परखाये जगत मां,
वेर तणो रखवाळ,
ए नो, धुळे गयो अवतार (२)
जे, जणनारा नी लाज न राखे,
इने राखे घर नी बार,
पवित्र मन नु मान घटाडी,
द्वेष धरे घट माय,
ए नो, धुळे गयो अवतार (३)
जुठ्ठु बोली जुठ्ठु खातो,
इ खातो दु:ख नो मार,
सत्य धरे नही कदिये जीवन मा,
(पछी) पछताये समजाय,
ए नो, धुळे गयो अवतार (४)
पापी थइ ने पंडे पीडाये,
इनो सुनो थ्यो संसार,
ज्ञानी बनी ने फरे अज्ञानी,
अभीमानी थइ बार,
ए नो, धुळे गयो अवतार (५)
भाव भक्ति नो रंग बनावी,
रंगीये जीव रसाळ,
षड़रिपु नो साथ त्यजो तो,
थाये बेडो पार,
ए नो, धुळे गयो अवतार (६)
नेक बनी ने नमशो सहु ने,
ने त्यागो पारकी नार,
"मीत" वेण शुभ उचरो जीवन मा,
कदी रझळे न घरबार,
ए नो, धुळे गयो अवतार (७)
*🙏------ मितेशदान(सिंहढीय्च)🙏*
*कवि मीत*
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