राम भजननी रीड पडी
हरिजन होय ते…हालीनी नीकळजो, रामभजननी रीड पडी…,
साचा होय ते चाली नीकळजो, रामभजननी रीड पडी…
हरिजन. टेक
तृष्णा केरां त्रांसां वाग्यां, लक्ष्मीजीनी फोज चडइ…
झूझवुं होय तो हालो, जुवानो ! घाव झीलो जई एक घडी…
हरिजन…(१)
सागर जेटला धावण धाव्या, जनारीने पेट पडी…,
झूझवुं होय तो हालो, जुवानो ! घाव झीलो जइ एक घडी…,
हरिजन…(२)
गणी गणीने ऋण चुकावो, लेखण खडगे ल्यो लडी…,
जीवनमरनो छे सरवाळो, रखे जाय नइ भूल पडी…
हरिजन… (३)
आपणो मारग रोकीने ऊभी, आशा, तृष्णा, व्योम अडी…,
बळती आग्युंमां कूदी पडजो, अजरा मारग ल्यो लडी…
हरिजन…(४)
कांइ फिकर नइ केता कहे भले, माथां रणमां जाय पडी…,
' काग ' जीती जाय त्रणे भुवनमां, धड लडे जो एक पडी…
हरिजन…(५)
रचना :- काग बापु
टाइप :- सामरा पी गढवी
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