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23 जनवरी 2016

वेदना

*वेदना*
तारी गुलाबि ठंडीमां हुं, ठरी शक्यो नही,
तारी प्रेम झाकळ हुं, पामी शक्यो नही.
बंधानो भले हुं ,तपीने वादळ मां,
पण वरसाद बनीने वरसी शक्यो नही.
सजाव्या मे, घणा सपना भीतर,
पण,तारी सामे कंई दर्शावी शक्यो नही.
उडवा निकळ्यो छुं, ऐक पंखे,
जाणुछुं पडीश,छता मुजने संभाळी शक्यो नही.
कर्या प्राप्त अनेक 'वरदान' में,
पण,तारो एक श्राप मिटावी शक्यो नही.
                                       :- वरदान गढवी

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