पोरहा ने पादरे......
. ई काळ मुखी नो हुं पत्थरे पत्थर तोडी नाखीस...,मने जावा दो मारे ने मारी चारणीयांणी ने छेटुं पडे छे...,पोरहा वाळा तारुं पादर मारा रांक ना रतन ने गळी ग्युं...,लाव मने पाछी आप मारी चारणीयांणी .., तारा पादरे कामण करी ने मारी चारणीयांणी ने संताडी दीधी छे केहतो ऐ चारण ..., ऐनी चारणीयांणी ना पगलां गोततो विरह नी वेदना मां रडतो ककळतो भादर नी रेत मां भटकतो केवी वेदना सेहतो हशे...??
. || पोरहा ने पादरे ||
. रचना : जोगीदान गढवी (चडीया)
. छंद : सारसी
हुं कई सकुं ना कोई ने आ वेदना न विसरे
साजण हैयुं सळगतुं नकरा निसासा निसरे
मने नेय व्हाला बोल तारा सीम पाडे सादरे
आवे मने बउं याद चारण पोरहा ने पादरे..०१
कालांय घेलां वेंण तारां बोल जे तुं बोलती
वाली करी ने वालथी खेंचीन हैयां खोलती
पोढेल खोळे प्रेम थी तुं चीत ओढी चादरे
आवे मने बउं याद चारण पोरहा ने पादरे..०२
जीवस्युं ने मरस्युं बेय जोडे वायदो कां विसरी
उंडांण तो अण माप तारुं छतां कां थई सिसरी
नोखां थीये जीव नीकळसे नांभी पुकारे नादरे.
आवे मने बउं याद चारण पोरहा ने पादरे..०३
आ जगत के जाती रही पण मन नथी ऐ मानतुं
आ साद मारो सांभळे छे क्यांक मांडी न कान तुं
हेतेथी करीयो हथेय वाळो ऐ तने छे याद रे
आवे मने बउं याद चारण पोरहा ने पादरे..०४
पागल थई माथा पछाडुं रुवे फरतो राह मां
भुल्योय सघळुं भान चारण चारणी नी चाहमां
भव भव तणां भेरुं ने भरखी भुंड ओरी भादरे
आवे मने बउं याद चारण पोरहा ने पादरे..०५
वहमी हसे सुं वेदना ई कई रीते कलमुं कहे
जांणेय घायल जोगडा ई सायबो केवुं सहे.
लखतोय घुळ मां नाम भुंसे ऐज क्रम ने आदरे
आवे मने बउं याद चारण पोरहा ने पादरे..०६
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