लई संकल्प सेवानो,
दु:खी हर बांघवो माटे,
सदाये माणसाईनुं,
पुनित ऐक घाम थई जाशुं...!
नथी लवलेश भय अमने,
सपनामां पण पराजयनो,
समाज उत्थानमां,
अजब मुकाम थई जाशुं....!
दुषणो रुपी रावण अगर कोई अमारी घरती पर आवे,
करीने नाश दुश्मननो अमे पण
राम थई जाशुं....!
नथी खपता अमोने ऐ असमानताना वगोॅ
जगावी स्नेह हर दिलमां
चारण ऐक घारण थई जाशुं...!
अजब प्यारुं अमोने छे अमारुं
चारण केरुं नाम,
संस्कार तणुं समुहगान गाई
कविराज थई जाशुं.
मुशीबतना भले खडकाय अहींया ढेर लाखो पण,
समस्याओ संपीने सुलझावी,
ऐकाकार थई जाशुं...!
'' चकमक '' सुघरता समय लागे छे, पण तमे जोजो,
माँ सोनलना अमे डाह्या दिकरा थई जाशुं.
ऊमिॅल भरतकविनी ऐक कविताने अनेरु रुप आपेल छे.
जय माताजी.
कवि चकमक.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें