।।अहोनिश बजे छे अंतरे नकळंक, नाद गुरू नो।।
*अहोनिश बजे छे अंतरे नकळंक, नाद गुरू नो।
जगावे घोर निद्रा थी ते सरवो, साद गुरू नो।
* चल छोड ऐ मनवा आ दुनिया गुलाम छे सघळी।
जो सामे रह्युं वरताइ मुल्क, आबाद गुरू नो।
* पुर्वे लइने आवयो ने अहीं थी लइ जवानो हुं।
छुटशे दुनिया तोय साथे प्रेमाळ, प्रसाद गुरू नो।
* जुदे जुदे जनमे धर्यो देह जुदा अंश थी।
अनंत जन्मे पण आ आत्मा, औलाद गुरु नो।
* न होय कर्ण के रसणा,
न होय शब्द के स्मृति।
बधुं मौन होतां पण संभळाय, शब्द गुरु नो।
*हजारो ग्रंथ ना पाना गळे छे काळ नी गर्ता।
भवोभव तारवा काफी छे संकेत, एकाद गुरू नो।
* गत जन्म ना भुल्यो आना पण जवाशे भुली।
"जय" रहेशे जन्मोजन्म संबंध, याद गुरू नो।
::::: सदगुरू देव आइ श्री गंगामा ना चरणों मा अर्पित:::
कविः "जय"।
- जयेशदान गढवी।
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