-जननी तणुं रुण-
जननी तणुं आ रुण जो ने तारा पर उधार छे
प्रियतम मलता मात भुले ऐ ने तो धिक्कार छे
राखी कोख मां नव मास पोष्यो रक्त खुद तणा दीधा
नीज मांस थी तने भाग दीधो ऐ ने वंदन वारंवार छे
प्रियतम मलता मात भुले ऐ ने तो धिक्कार छे
जीण आंगणी पकडी ने चालता शिखतो हतो
हवे आंगणी बनी हाथ तो अमथो तुं हरखाय छे
प्रियतम मलता मात भुले ऐ ने तो धिक्कार छे
दलडुं दु:खे तोये स्मित करती जाणे खुशी अपार छे
"देव" ऐ शक्ति नी चरण रज मां आखुये संसार छे
प्रियतम मलता मात भुले ऐ ने तो धिक्कार छे
✍🏻देव गढवी
नानाकपाया-मुंदरा
कच्छ
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