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सोनलमाना फोटाने पूजवानी साथे ऐथी पण वघारे ऐमना वेण, आदेशो, अघुरा संकल्पोने साकार करवा माटे आपणे जीवीऐ तो ऐ ज आपणुं साचुं जीवन छे. साची भकित छे अने चारणतत्वनी साची उपासना छे.
'' नडवुं नहि, लडवुं नहि,
कोईने कनडवुं नहि,
ज्यां त्यां सडवुं,
के सबडवुं नहि....!
हा जरुर लागे त्यां खरो चारण कडवुं केता पण अचकातो नथी, पछी जगत ऐने जे गणे ते.
सोनलमां ऐ आदेशो अने सारा विचारो आपता कह्युं छे के, '
ज्यां त्यां जावुं नहि, जेवुं तेवुं खावुं नहि, प्रभु के प्रकृतिने प्रेम करवो, आंखमां विकार न राखवो, बोलवामां वैखरी वाणीनो उपयोग न करवो, कानथी खराब वातुं सांभळवी नहि. कोईनी निंदा के खोदणी करवी नहि, पंडमां पवित्रता राखवी, बीजा प्रत्ये पूज्य भाव राखवो, समदष्टिथी जोवुं, आत्माने चाहवो शरीरने नहि,
आवा बघा गुणो होय तो ज अापणे खरा अथॅमां चारण के देवीपुत्र छीऐ.
वडीलोना कथनमांथी.
🌺जय माताजी🌺
प्रस्तुति कवि चकमक.
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