. 🇮🇳 *|| तिरंगो ||*🇮🇳
. *रचना: जोगीदान गढवी (चडीया)*
अंतर नुं अरमान तिरंगो,आन बान अभिमान तिरंगो
झपटे लाख सलामुं झीलतो, छे भारत नी शान तिरंगो. ||01||
सोंणीत थी सिंच्यो छे जेने, तरवारो नी तान तिरंगो
कंठ कसुंबल केसरीयाळो, गरजे चारण गान तिरंगो. ||02||
अखंड भारत चक्र अशोकी, फौज तणुं फरमान तिरंगो
रदय स्वेत रंगे थी रंग्यो, प्रेम तणीं पेह चान तिरंगो. ||03||
हरियाळो धरती ना हैये, धींगु पकवे धान तिरंगो
चडीया घट जग थी चडीयातो, सो सो सरग समान तिरंगो. ||04||
देश दाझ छे जेना दीलमां, भगवो त्यां भगवान तिरंगो
कोम वाद नही जेना काळज, ईस्वर तणीं अजान तिरंगो. ||05||
ओळखतो आक्खी आलम ने, वेधु ने विदवान तिरंगो
फलक तलक फडेडाट फररतो, प्रगती नुं परमान तिरंगो. ||06||
सरहद नो सावज ई साचो, बहादुर ने बळवान तिरंगो
त्राड दई दुशमन पर त्रुट्टे, शहिदो नुं सनमान तिरंगो. ||07||
भूलकां नी शाळा मां भाळ्यो, गाई करे गूलतान तिरंगो
पहाडो पर देतो पडछंदी, देस तणो दरवान तिरंगो. ||08||
नफट नजर नबळी को नाखे, घोर करे घमसान तिरंगो
जग आखा नी जमना माथे, कालीय मर्दन कान तिरंगो. ||09||
बलीदानी चोलेय बसंती, रंग तणूं रोगान तिरंगो
भगत सिंग जेवा भडवीर नुं, जीवतर जोगीदान तिरंगो. ||10||
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1 टिप्पणी:
પરમ શ્રદ્ધેય શ્રી જોગીદાનભાઈ
આપના હસ્તકમલ અને હૃદયકુંજ માંથી અવિરત અને અસ્ખલિત વરસતી ચારણી વાણી અમને અનુપમ આનંદ આપે છે....૧૯૯૩ ની એક વાત યાદ આવે છે....
नमणा होठ ने जोइने जेम पाणी ने तरस लागे ऍम चारण ने जोइने वाणी तरसी बने छे। शब्द चारण ने त्या चाकरी करे छे अने वाणी ऐना रखोपा करे छे। चाखो तो कडवो लागे अने पीवो तो मिठो लागे ऐ ज मारो चारण ।
विनु महेता । ( 9/3/1993 - मुम्बई )।મુંબઈમાં કવિ દાદ ના સન્માન પ્રસંગે
ઘણું જીવો બાપ ....આઈ સોનલ તમારા રખોપા કરે......
રોહિત ચૌહાણ
ચોગઠ-તા-ઉમરાળા-જી-ભાવનગર ગુજરાત ૩૬૪૩૩૦
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