. || राजमाता नो मच्छु ने ठबको||
राग : काळजा केरो कटको मारो...
रचना : देविसिंह केसरीसिंह झुला (उघरोज)
राजमाता रुवे हाय मच्छु ,मारुं मोरबी गळी गई ..
विसवासे हुं गयी विदेसे , ने थापण ओळण थई....टेक..
काळा पांणा तारुं काळजुं काळु, में केदीये कळ्युं नई
कालां घेलां मारां बाळ भोळुडां, हाय तुं भरखी गई..
राजमाता रुवे हाय मच्छु..मारुं मोरबी गळी गई...||01||
रात दीवस ज्यां रोसनी थाती, मेदनी माती नई..
होटल थेटर हाट बजारुं,ने शेरीयुं सुनीय थई..
राजमाता रुवे हाय मच्छु..मारुं मोरबी गळी गई...||02||
राज गयो सिरताज गयो, युवराज गयो हुं ञ गई
लाख छोरुं नी मावडी आजे बाळ विहोणीं थई..
राजमाता रुवे हाय मच्छु..मारुं मोरबी गळी गई...||03||
कुंवर मयुर पण गीया कैलासे, मास ओगस्ट नी मई
एज गोझारी आ बारमी तारीख, मोरबी पल्ले थई
राजमाता रुवे हाय मच्छु..मारुं मोरबी गळी गई...||04||
नजरे जुवे ने मावडी रुवे , वेदना आंखेय वई
देविसिंग ऐनुं दील दुभाणुं ने विदेस मां वई गई
राजमाता रुवे हाय मच्छु..मारुं मोरबी गळी गई...||05||
(मोरबी नी होनारत पर देविसिंह केसरीसिंह झुला नी रचना)
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