नारीजीवन
ऐक ऐवो वखत हतो ज्यारे चारणीयाणीने के काठीयाणीने सगा दियरथी ये 'भाभी' न कहेवाय. मोटी होय तो 'आई ' कहेवाय. ऐ प्रथानी पाछळ आई चारणी कामबाईनी धटना उभी छे.
लाखा जाम राजाऐ ऐ रुपवतीने 'भाभी ' कहेतां तो ऐणे पोतानी छाती परथी स्वहस्ते बंने स्तन वाढी आप्यां. ने लोहीना घोघनी साथोसाथ ह्रदयना लोही जेवो दुहो छूटयो के,
हुं भेणी तुं भा,
सगां आदुनो सबंघ !
कवचन काछेला,
कीये गने कढ्ढयुं !!
हुं चारणी तो रजपूतनी बहेन थाउं. ने तुं रजपूत चारणीनो भाई था. आपणी जाति वच्चेनो ऐ सबंघ तो अनादि काळथी चाल्यो आवे छे. छतां, हे कच्छमांथी आवेल क्षत्रिय राजा
आज मारो ऐवो शुं गुनो जोयो के तें 'भाभी ' ऐवो कुशब्द काढयो.
चारणने चकमक तणी,
ओछी म गण्ये आग !
हाडी तोय ताग ( तोय )
लागे लाखणशीवडा !!
मारा पर कृदष्टि करनार ओ लाखा जाम ! चकमक जेम ठंडो होय पण ऐमां अनंत अग्नि भरेलो छे. तेम चारणोमां पण छूपो अग्नि भरेलो छे ते तने भस्म करी नाखशे.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें