. *||कौशल्या नुं कल्पांत||*
. *ढाळ: भजुं तुने भेळीया वाळी*
. *रचना: जोगीदान गढवी (चडीया)*
कौशल्या जी कंथ ने केता,वाला कांउ थई गीया वेता
रोक्यां नव नेंणले रेता, लूछी नेंण हीबका लेता....टेक
देव जेवो मारो दीकरो एने, वळावी ने वन वास(०२)
सरग हाल्या तमे एकला स्वामी, हवे, अमने कोनी आस
अवगण शुं आवीया एता, लुंछी आंख हीबका लेता...01
वचन चोरी ना विहर्या वाला, पडीया एकल पंथ(०२)
रझळावी माता राम नी रोती,हुं, क्यांय नी नो रई कंथ
लेखां कीया भव ना लेता, कौसल्या जी कंथ ने केता...02
कोई केगई ने कांई कहे तो, मांडवी ठारेय मन्न (०२)
जानकी राघव जंगले मारे,आ, दोयला केवाय दन्न
तूंने कहुं जूग श्युं त्रेता, लूंछे नेंण हीबका लेता...03
सूमितरा नेतो सतरूहण ने,सूत किरती नो साथ (०२)
एकली हुं आज ओरडो ओढी, नाखुं निसासाय नाथ
दीलासाय दल ने देता, लूछे नेंण हीबका लेता...04
पति काजे मेंतो पकडी नोंती, वनरा वन नी वाट (०२)
जातां स्वामी जोगीदानीजी हुंतो, घर नहीं नईं घाट
जोती रही राम जनेता, लूंछी नेंण हीबका लेता...05
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