।। राधा ने क्या इलम थी विसारी......? ।।
* कहे तो खरो कान, तें राधा ने क्या इलम थी विसारी......?
शामळीया जरा बोलने साचुं, छाना खुणे शी रीते संभारी?
राधा ने क्या इलम थी विसारी......?
* गोकुळ नी गलीयुं मा नाचतो नचावतो, जमना ने कांठे जइ धातो।
बंसरी पर गोपीयुं घेली थइ गाती, तु राधा पर घेलो थइ गातो।
घडीक मा भुलयो आ घेलछा घनश्याम, मथुरा मा बनीने बेठो मोरारी।
राधा ने क्या इलम थी विसारी......?
* पुर्ण तो कहेवायो भले ने पुरूषोतम, पुर्णता राधा थी पामयो ।
गीता मा वात तुं करतो स्थितप्रज्ञ, पण जीवन गीत राधा थी जामयो।
जगत ने जीवन तें जीवाडयुं जोगेश्वर, पण तने तो राधा शीखवनारी।
राधा ने क्या इलम थी विसारी......?
* कण कण कृष्णमय जण जण जाणतो, जादव राधामय वात कोक जाणे।
मथुरा,द्वारका,कुरूखेत, हस्तीपुर, बधु विसारी कोक टाणे।
ऐकलो, अटुलो, साव भीतर मा भांभरी, राधे राधे ऊठे पोकारी।
राधा ने क्या इलम थी विसारी......?
* तारा रे खेल साव नोखा नटनागर, गागर सागर मा भरी दीधी गीता।
सात सागर मा स्नेह न समाय राधा नो, साची जे प्रेम नी सरिता।
राधा ने माधा ना नेह नी वात "जय", वर्णवी जाय न विस्तारी।
राधा ने क्या इलम थी विसारी......?
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कृष्ण जनमोत्स्व की हार्दिक शुभकामनाएं......
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- कविः जय।
- जयेशदान गढवी।
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