```राग जिल्लो - त्रिताल```
```रचना ::- शंकरदान जेठीदान देथा - लींबडी```
समजी लेने प्यारा सत्यसार संसार मां रे... टेक.
जन्मयो ज्यारे आ संसारे, तारे साथ हतुं शुं त्यारें ;
लेवानुं पण नथी लगारे लारमां रे, समजी लेने .... टेक.
जीव देहनी थतां जुदाई, सरवे मिथ्या थशे सगाई ;
बधां रहे पछताई रोई घरबारमां रे, समजी लेने .... टेक.
उधम आ तनथी आदरवो, जेणे मटे जनमवो मरवो ;
फेरो पडे न फरवो खाणी चारमां रे, समजी लेने .... टेक.
शंकर कवि झट आवे छेडो, हरि नामथी कर तुं हेडो ;
पार थाय तो बेडो भव एकुपारमां रे, समजी लेने .... टेक.
टाइप बाय :- www.charanisahity.in
संदर्भ :- लघु संग्रह (कच्छ भुज की व्रजभाषा पाठशाळा के अभ्यासक्रम का प्रारंभिक पुस्तक) पाना नंबर :- 173 पर थी
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