. *|| दैव भौम द्वारीका ||*
. *रचना: जोगीदान गढवी (चडीया)*
. *छंद: चतुस्पदी नाराच*
प्रकट्ट चारणाय घट्ट वट्ट हंन्त वेरीयां
क्रकट्ट कौर वांण पे झपट्ट दंत झेरीयां
लगत्त है भगत्त कोय फूल की फुहारीका
जपंत जोगीदान मान दैव भौम द्वारीका
बजंत ढोल त्रंबकाय झांझ ताल झुम्मरी
करत्त पुकार कोलवो घुमत्त नाथ घुम्मरी
प्रमेशराय ईशराय पार जग्त पारीका
जपंत जोगीदान मान दैव भौम द्वारीका
पुगंत एक पल्ल मे सुणंत नाद सारीया
दूसासनाय दंड दैंण जंग खेत्र जारीया
रखंत ठाठ ठाकरो नवैय खंड नारीका
जपंत जोगीदान मान दैव भौम द्वारीका
जगत्त नाथ साथ आठ रांणीयां जीते रही
कलीन्दि लक्ष्मणाय मित्र विंद सत्या भद्रही
ॠखंम्मणीय सत्यभाम जामवंती ज्वारीका
जपंत जोगीदान मान दैव भौम द्वारीका
अयो श्रीदाम आंगणेय मित्र द्रव्य मांगणे
पितांबरम पटांगणे त्रुठेल प्रित्त त्रांगण
भरेल ढाहरां सुवण ईडर गढां उतारीका
जपंत जोगीदान मान दैव भौम द्वारीका
जहर मिरांय जादवा लहर अलक्ख लादवा
मिळ्यो प्रकट्ट माधवा ब्रसेल रींछ बाधवा
जाम वंत को प्रसंत राम वंत ईहारीका
जपंत जोगीदान मान दैव भौम द्वारीका
क्रमशः........
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