-: कागवाणी :-
दुहा
दोमण दूजी होय, रेढां खेतरडां रिये;
जाते दनडे जोय, कांई न मळे कागडा !
जाते दनडे जोय, कांई न मळे कागडा !
हे काग ! पशुधन ए नजरधन कहेवाय छे, भेंसो - गायोने दोहती वखते जे घरधणी कदी ध्यान आपतो नथी अने खेडवाडमां जेनी पोतानी देखरेख नथी, तेने ढोरमां के खेडमां छेवटे कांइ रहेतुं नथी, केवल नुकसानी ज आवे छे;.,.,
धंधे न मळे ध्यान, कायम गामतरां करे;
थोडा दिवस थान, कांइ न मळे कागडा !
थोडा दिवस थान, कांइ न मळे कागडा !
हे काग ! जे धंधामां चित्त परोवतो नथी अने दररोज मुसाफरी ज कर्या करे छे, तेने माणसो थोडा दिवस आवकार आपे छे, पण पछी एनो तिरस्कार करे छे,.,.,
रचना :- पुज्य दुला भाया काग { भगतबापु }
पोस्ट :- कल्याण पी. गढवी
पोस्ट :- कल्याण पी. गढवी
वंदे सोनल मातरम्
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