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5 सितंबर 2016

कागवाणी

-:  कागवाणी :-
दुहा
दोमण   दूजी  होय,  रेढां   खेतरडां   रिये;
जाते   दनडे  जोय,  कांई  न  मळे कागडा !
हे  काग !   पशुधन  ए   नजरधन   कहेवाय  छे,  भेंसो - गायोने  दोहती  वखते  जे  घरधणी  कदी  ध्यान  आपतो नथी  अने  खेडवाडमां  जेनी पोतानी  देखरेख  नथी,  तेने  ढोरमां  के  खेडमां  छेवटे कांइ  रहेतुं  नथी,  केवल नुकसानी ज  आवे  छे;.,.,
धंधे  न  मळे   ध्यान,  कायम  गामतरां   करे;
थोडा  दिवस  थान,  कांइ  न  मळे   कागडा !

हे  काग  !  जे  धंधामां  चित्त  परोवतो  नथी  अने  दररोज मुसाफरी  ज  कर्या  करे  छे,  तेने  माणसो  थोडा  दिवस  आवकार  आपे   छे,  पण पछी  एनो   तिरस्कार  करे  छे,.,.,
रचना :- पुज्य दुला भाया काग { भगतबापु }
पोस्ट :- कल्याण पी. गढवी
वंदे सोनल मातरम् 

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