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10 सितंबर 2016

पिर नी स्तुति :- रचना :- कानदास महेडु

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         पिर नी स्तुति
कानदास महेडु नामनो चुस्त हिन्दु धर्मी चारण पोते ज्यारे कोइ जुठा आरोप बदल अंग्रेजो नो केदी बन्यो हतो त्यारे पोतानी साय माटे दरीया पिर नी स्तुति करी
     छंद अध सरसी
भुज दंड कोप्यो दुठ भुरो धाट जेहडो तण घडी
लोहरा नोधी दिया लंगर कियो कबजे कोटडी
तण उपर जडियां सखत ताळा उपर पहेरो आवगो
दुल्ला महम्मद पीर दरियाइ भीर कर बेडी भंगो

कलबली भाषा पेर्य कुरती मेरनैदल माइया
तोफंग हाथे सरा टोपी सोइन गणे सांइया
हरराम चीजां तरक हिन्दु लाल चहेरो तण लगो
दुल्ला महम्मद पीर दरियाइ भीर कर बेडी भंगो

शाखा न खत्री नही सुदर वैश ब्रह्मन कुलन हे
हल्लेन मुसलमान हिन्दु कमण जाति तण कहे
असुद रेवे खाय अम्मख नाय जल मां हुइ नगो
दुल्ला महम्मद पीर दरियाइ भीर कर बेडी भंगो

इदका नाही दीप ओछव गाम देवा न गणे
कुरान गीता नहि खटक्रम ब्रह्मवाणी न भणे
चल होइ थक्का नहि नक्को दोही रस्तेथी दगो
दुल्ला महम्मद पीर दरियाइ भीर कर बेडी भंगो

मोराद हासल करण मालक सबे खालकरी सदा
भेटणो सुखरी अटल वैभव पेटणो सुबां मदा
निज वकट खावंद धाव नखते संकट वखते तु सगो
दुल्ला महम्मद पीर दरियाइ भीर कर बेडी भंगो

अचबंक माथे पडी आफत सखत के दे सोपीओ
वळ हलण चल्लण अति वपति थानके जपतं थियो
चकडोळ थे घन घोर चिंता जोर गेहडो तण जगो
दुल्ला महम्मद पीर दरियाइ भीर कर बेडी भंगो

अंगरेज केरे पेच आयो तुंहारी कुमख तठे
जयम जहाज कारण करी जलदी असी जलदी कर अठे
बंचाव्य कवियां तोडय बेडी कानरो पकडी क्रगो
दुल्ला महम्मद पिर दरियाइ भीर कर बेडी भंगो

टाइप हरि गढवी ववार कच्छ
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