*आगथी आग*
आगथी आग ओलववा ना प्रयास रहेवा दो
मीठा खंजर थी कापवा ना प्रयास रहेवा दो
आगथी आग ....
समजे छे बधुं जगत पण ओणखे छे तमोने
छुपाववी ऐ अरीसा समक्ष जात ने रहेवा दो
आगथी आग ....
हसतां मुखे भीतरनुं आ तमारु अणगमुं छे
मलो आवी स्नेही बनीने हवे ईष्याॅ रहेवा दो
आगथी आग ....
अमोअंगत बनी दगो करी ऐ संस्कारो नथी
शिखववा पाठ अमने चतुराई ना रहेवा दो
आगथी आग ....
अंगत मुकीने"देव",आगण वधवुं नथी सारुं
स्नेही रह्या पाछण तो मने पाछण रहेवा दो
आगथी आग ....
✍🏻देव गढवी
नानाकपाया-मुंदरा
कच्छ
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