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12 अक्तूबर 2016

प्रभाती : रचना :- दिलजीतभाई गढवी

*प्रभाती*

गोकूळ जेवू गाम अमाणू पवितर पूण्य वाळू रे...टेक

उजळा मोढे ओरडा ने ज्यां
आंगणा रुडा रुपाळा रे,
चोक्खी शेरियू स्वच्छ दिसे
नमणां चोक निराळा रे;
गोकूळ जेवू गाम अमाणू...1

मंगळ प्रभाते मां ना मढमां
गरवी चरजू गंहेकती रे,
ठाकर मंदीरमां ठहक वाळी
आरतियू उतरती रे;
गोकूळ जेवू गाम अमाणू...2

धमळा धोरी गायू गोरी मेखडियू  मलकती रे,
दूध दहीं घी माखणथी समृध्धी  छलकती रे;
गोकूळ जेवू गाम अमाणू...3

नदी ऐ नीर अखूट वहेने विरडे आछा वारी रे,
हेल त्रांबाळू लई ने हेते पाणी भरे पनीहारी रे;
गोकूळ जेवू गाम अमाणू...4

गाम नां गोंदरे गोवाळ माथे वांभे धेनू वळूंभती रे,
*दिलजीत* नेह नू रक्षण करवा जगदंबा जळूंबती रे;
गोकूळ जेवू गाम अमाणू....5

आज आवा गामडां भूतकाळ थता जाय छे शहेरी करण अने बे रोजगारी ना हिसाबे अनेक गामडां भंगाता जाय छे
गाय कामधेनू छे छता आज कोई ने गमती नथी गामनू पाधर गायू ना धणथी गौरज
थी पवित्र करतू भाग्ये जोवा मळे छे छता छे ऐने सो सो सलामू,

दिलजीत बाटी ढसा जं. ना
जै माताजी..मो.9925263039

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