*अमर शहीद ठा.केसरीसिंह बारहठ की 144 वीं जयन्ती (21नवम्बर),पर कोटिश _कोटिश नमन*
।। *क्रांतिकारी केशरीसिंह बारहठ्ठ* ।।
* चिरकाल रही बंधन में, अवहेलना को सहती सहती।
अपनों के भिन्न भिन्न सुरों से, दाह उर की खुदा को दहती ।
भारती भाग्य जगाने जोगी, ज्योत क्रांति की ले निकला।
मरू भोम से- मेरू सोम तक, चंडी वाहन *केशरी* चला।...... 1
* दहाड़ों से दिशाएं डगमग, पहाड़ों पर गुंजा जयघोष।
जल में, थल में, दल में, दिल में, अंग्रेजों प्रति आक्रोश।
किया संगठित क्षात्र तेज को, निज जाति अभिमान उठाया।
बारहठ्ठ केशरी बारह रवि सा, भारत भाल विशाल दिपाया ।..... 2
* आन चितोड की, शान सिसोदिया, मान मरू का, रूक जाता।
दरबार ज्योर्ज के दिल्ली जा कर, फतहसिंह जो झुक जाता।
चेतावनी रा खींच चुंगटीया, राजपुती शिरमोर रखी।
धन्य धन्य हो चारण वीरवर, परंपरा शिरजोर रखी।...... 3
* यज्ञ वेदी पर किया समर्पित, *जोरावर* भुज अंश को।
होम दिया भारत के खातिर, *प्रताप* से निज वंश को।
कलह चाहना मध्य युग की, वेदकाल सी उपासना।
चारण-व्रत को किया उजागर, सत्य, शौर्य, शील, साधना।..... 4
* नूतन भारत, नूतन युग में, बहु नूतन बाधा प्रसरती।
चारण, चारण है कोई चारण?, आज पुकार रही धरती।
हे! केशरी, युग-प्रहरी, *जय*कवि की अभिलाषा यही है।
तेरी ज्योति से ज्योति मेरी जगे, अंतर क्रांति आश यही है।....... 5
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-कवि : *जय*।
- जयेशदान गढवी।
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