. *||केम न आवे कान||*
. *राग: माढ*
. *रचना: जोगीदान गढवी (चडीया)*
मारी भीड सुंणी भगवान रे तुं, केम न आवे कान.
सामळीया वर सुं समजावुं,,वेधूं तुं विदवान रे..
मारी भीड सुंणी भगवान रे तुं, केम न आवे कान......टेक
नावलीयो कही वाट निहाळुं..भूली हुं जग भान..
रांणे घोळी ने त्राहळ रेड्युं..जोने लेवाय जान रे..
मारी भीड सुंणी भगवान रे तुं, केम न आवे कान...||01||
छोड नही रण छोड फरीथी, मोहन आ मेदान
मारी मने परवा नई माधा, होशे तारीज हाण रे
मारी भीड सुंणी भगवान रे तुं, केम न आवे कान...||02||
त्रिकम जमुना तट पर हुतो.. नटखट तुं नादान
गोकळ नी हुं एज छुं गोपी, पारख ने पेहचान..
मारी भीड सुंणी भगवान रे तुं, केम न आवे कान...||03||
रावुं अमांणी सांभळ रावु..कान धरो ने कान..
माढ मीरां अने माळवोे माधा, जहर ने जोगीदान रे..
मारी भीड सुंणी भगवान रे तुं, केम न आवे कान...||04||
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