*|| रचना - सरस्वती वंदना ||*
*|| छंद - सारसी ||*
*||कर्ता - मितेशदान गढवी(सिंहढाय्च) ||*
सतलोक रहेती सरसती मा शतरुपा परमेश्वरी,
वाणी सदा शुभ आपजे शुद्ध दे मती वागेश्वरी,
विधा विनय नी अधिस्ठात्री श्वेत वस्त्रा धारणी,
जय शारदा वर दायिनी गुणदे सदा सतसारणी,(1)
प्रगटी परम ब्रह्मा थकी इण मानसा पुत्री बणी,
पुरहाण पावन कर कथी गाथा सकळ तोरी गणी,
कविया जीभा तु हर वसी वाचा बनी ब्रह्मचारणी,
जय शारदा वर दायिनी गुणदे सदा सतसारणी,(2)
संगीत ज्ञाता तु खरी सुर सात मे पुर सूरता,
ख्याता जबर किर्ती सरण शुक्ला वरण संपुरता,
व संत पांचम जगत पुजन ग्यान तेजं तारणी,
जय शारदा वर दायिनी गुणदे सदा सतसारणी,(3)
रंगेय रुपम श्वेत दैवी चार भुजा सोहती,
करती मधुरू स्मित मुखे मुरती मन मोहती,
कर धार माळा इशनिष्ठा प्रतिक वेदावारीणी,
जय शारदा वर दायिनी गुणदे सदा सतसारणी,(4)
वाहन हंसा अर्थ अर्पित शुद्ध शांती मय भयो,
सौंदर्य से संचित सरग़म नाद वीणा कर रह्यो,
पुजाय परथम काज भणतर भारती सतकारणी,
जय शारदा वरदायिनी गुणदे सदा सतसारणी,(5)
वेदा न जाण्या तोय मा ते शब्द मुजने आपिया,
किरपा करी मुज पर तिहारी ज्ञान सिंचन साचिया,
गुण *मीत* गावे सारसी अज्ञान कुळा जारणी,
जय शारदा वर दायिनी गुणदे सदा सतसारणी,(6)
*🙏-------मितेशदान(सिंहढाय्च)-------🙏*
*कवि मीत*
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