*|| शिवा कवित ||*
*|| कर्ता - मितेशदान गढवी(सिंहढाय्च) ||*
डाडो जागतो जटाळो बेठी उंचे परवत पर,
हरे हर पाप उकी जटामे बसावे है,
भभुत लगावी अंग गंग को जटा मे डाल,
कंठ काल धरी मुंड माल मे कसावे है,
कर तिरशुळ सोहे भाल पे तिलक तिको,
चरम उपरी भोळो आसन लगावे है,
हाथ हो हमारे पर नाथ महादेव को तो,
सब दु:ख पीड़ हर कष्ट भाग जावे है,(1)
देवो का है दैव तुही नाथ जगतात शिवा,
नंदी पे सवार संग डमरु की डाक है,
भूत टोळी भेर किये नाचती भभुत चोळी,
भगता फेलाय झोळी भांगफळ चाख है,
वासूकी को डोक डाल रुप महाकाल न्याल,
भैरवा बनी विशाल काल को डगावे है,
हाथ हो हमारे पर नाथ महादेव को तो,
सब दु:ख पीड़ हर कष्ट भाग जावे है,(2)
वेद महा वेद माये रुदरा जणायो तुही,
संहार सरुपा दैव नामना जणाइ है,
प्रलय व लय पुरो तुम्हारे आधिन होवे,
भारती को भाण रुप आधार बणाइ है,
निराकार तु दयाल गुणीजन गुणंधर,
उमा संग नित खेल चौपाट सजावे है,
हाथ हो हमारे पर नाथ महादेव को तो,
सब दु:ख पीड़ हर कष्ट भाग जावे है,(3)
अज एकपात अहिबुर्धनिय शिव शंभु,
शंकरा पिनाक महा इशर काहायो है,
त्रंबकेश वृषाकपि तुही भव तारनार,
सब दु:ख डार नार वैद तु सवायो है,
आग जल क्षिति नभ वायु की मुरत बनी,
पशुपती रुप यजमान बन जावे है,
हथ हो हमारे पर नाथ महादेव को तो,
सब दु:ख पीड़ हर कष्ट भाग जावे है.(4)
अध नारी रुप होते फ़िर भी कामाजीत हो
ग्रुहस्थीय बनी छता वासी शमशान का,
आशुतोष होके भी तु भयंकर रुदरा हो
महा नाथ कहू तुजे सारे ये जहान का,
भूत प्रेत सिंह नंदि सरप मयुर संग,
संग समभाव सब घर मे बसावे है,
हथ हो हमारे पर नाथ महादैव को तो.सब दु:ख पीड हर कष्ट भाग जावे है,(5)
भोले अहमर्ष काढ वाढ कुळ मुळ तले,
षडरिपू तोड के तु जग को सुधार दे,
नित मे नमामी हर नमहर नाम जपा,
जपा उमापति सुख सदाय अपार दे,
*मीत*गावे गुण तोरा,शिव शंभु नाथ भोरा,
शबद कवित थकी तुजको रिजावे है,
हथ हो हमारे पर नाथ महा देव को तो,
सब दु:ख पीड़ हर कष्ट भाग जावे है,(6)
🌺 *|| छप्पय ||* 🌺
काल न्याल माहाकाल,वेद शंकर समजायो,
भजु नित भुपाल ,ताल डमरु डमकायो,
विशधर तू विहशाल,भाल पर नैण सजायो,
जटा गंग की जाल,व्हाल बहू मीत वरसायो,
जगत परे किरपा करण,हरण हजारो पाप तु,
मीत लरण तुज ने शरण,दन दन आशिष आप तु,
*🙏-------मितेशदान(सिंहढाय्च)-------🙏*
*कवि मीत*
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