*|| मातृप्रेम वन्दना ||*
*|| छंद - सारसी ||*
*|| कर्ता - मितेशदान गढवी(सिंहढाय्च) ||*
तू व्हाल नो सागर जनेता जगत जननी मावडी,
प्राणे थी मारा प्राण चांपी,सुख दु:ख तु बाटती,
रुडा ह्रदय ना प्रेम मुज पर रोज तु वरसावती,
भुलो हजारो माफ़ करती,बाळ नी तु नावडी,
तु व्हाल नो सागर जनेता जगत जननी मावडी,(1)
पोढ्योतो जेदी घोडीया मा हिंचका हलकारती,
मीठा मधुरा साद थी तु हालूडा हंभरावती,
अमृत समा ए दूध ना तु धावणा धवरा वडी,
तु व्हाल नो सागर जनेता जगत जननी मावडी,(2)
नानो हतो हु बाळ जेदी भटकतो ए गाम मा,
चिंता करी ने बेसती तु रोज तारा काम मा,
आवु हु ज्यारे घेर पाछो कान पकडे भावथी,
तु व्हालनो सागर जनेता जगत जननी मावडी,(3)
भणतर दिधू ते घोडिया मा,खोडले सुवरावती,
संस्कार रूपी ज्ञान बीजो लोही मा तु वावती,
वीरो तणी गाथा सुणावी निडर मुजने बनावती,
तु व्हाल नो सागर जनेता जगत जननी मावडी,(4)
मोटो थयो हु ज्यार थी तु ध्यान मुज पर राखती,
जोये कदाये घाव मारा,चित्त तोळा दुभावेती,
आँसु न जोती आंख मा ने हाथ थी सेहलावती,
तु व्हाल नो सागर जनेता जगत जननी मावडी,(5)
आ भाग्य मारू उजळु ए करम तारा भाग छे,
धन्य जनेता मीठडी मुज पर तमारो हाथ छे,
करे याद आजे *मीतडो* जुना क्षणो रससाळथी,
तु व्हाल नो सागर जनेता जगत जननी मावडी,(6)
*आ चरण अमुक एवा लोको माटे के आज ना आ जमाना मा बे पल नी खुशी मले त्यारे ए एनी मा ने तथा बाप ने भूली जाय छे,पोते सारू नाम करी जाय एटले मान मोभो जाळववा एना घरडा मा बाप ने घर नी बहार काढी व्रुध्ध आश्रम मा मोकली दे छे*
फाटयो जमानो आज नो जे मात ने धुतकारता,
लोको नही ते दैत्य छे जे माने दु:ख बहु आपता,
अंतर दुभावी मावडी ना नरक लोक सीधावता,
हे धुत मानव मावडी ना गुण का लजवाडता,
*तथा आ कडी एना माटे छे के जेने मा शबद नो साचो अर्थ समजाइ जाय,मा नी तात्पर्यता,मा नु सुख,माँ ना गुण याद आवी जाय त्यार थी साचा रास्ते एनो पश्च्याताप करी वळी जाय छे,त्यारे*
भुल्यो हतो हु भान ज्यारे समय ना ए दोष थी,
ए याद तारी मावडी छुटी ह्रदय ना कोष थी,
वाळ्यो ते मुज सत राह पर भुलो भुलावी
*मीतडा*
पोषण तिहारा प्रेम वाळा याद आव्या गीतडा,
🌺
🙏----------- *मितेशदान(सिंहढाय्च)* ------------🙏
*कवि मीत*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें