*|| नवली नवरात्री ||*
*|| छंद - दोमळीयो ||*
*||कर्ता -मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*
नवरात आवि आसो मास एकम आनंद उमंग को रंग चडे,
परथम सुरंग की जंग लगा वण रास सभे अंग अंग लड़े,
संग ताल धड़ाक थडाक धडाकाय ढोल झंझाकाय झंझकती,
जग जब्बर जोगण आवड मोगल रास राहुडाये रमंकती,(1)
रात बीज जामी नवरात तणी संग सात सखी भेर भमतियु,
पेरी कड़ला काम्बियु पग झंझरियु भेळीये कोडीयु शोभंतियु,
धणणण धरा धम ध्रुजनती पग ठेकिये चालन चालंती,
जग जब्बर जोगण आवड मोगल रास राहुडाये रमंकती,(2)
त्रीज तृतीय त्रोगळ जोगळ मोगल आवड पीठड़ होल फरे,
नवालाख सकत चोरासीनी चाराण मंडप माँ कील्लोल सरे,
हाथ ताल ताळी मुख स्मित छावी रूडी चरजु चारणा गावनती,
जग जब्बर जोगण आवड मोगल रास राहुडाये रमंकती(3)
चोथ चाळकनेचीय चामुंड बल्लाळ वीस भुजाडीयु मलकती,
नवला नवरंगिय वेह शुचंगीय रास रामंझट छलकती,
फ़ुदडी फरररर नाद गळळळ साथ सररर सरकती,
जग जब्बर जोगण आवड मोगल रास राहुडाये रमंकती(4)
निशा पंच पीठड़ पोगिये प्रांगण रास राचावत साम सरी,
सुंदरी गुण गावत शेण झीलावत सप्त समंदर हिंच धरी,
सुण साद सुरा निज बाळ पुकार पुरण होकारिये हमंकती,
जग जब्बर जोगण आवड मोगल रास राहुडाये रमंकती(5)
छठ साईं चपब्बीय नागल अम्बिय लाख सगत्तीय ठाम ठरे,
कुंभ हाथ धरांतीय दीप जलंतीय त्रिशुळ ते चमकाट भरे,
भुत भाग भभंकिय दैत दडंकिय आण सगत्तीय फ़रंकती,
जग जब्बर जोगण आवड मोगल रास राहुडाये रमंकती(6)
सप्तमें नवलाख ब्रह्मांड गजावत घुघर नाद घुघंबियता,
देव लोक मही सुर सुणत देवोय रास प्रफुल्लनिरंखीयता,
जयकार भयो जगमात रमे नवलाख उजासायु चमंकती,
जग जब्बर जोगण आवड मोगल रास राहुडाये रमंकती,
(7)
अष्ट में काम पुरण लाख सरूपमदैवी जनेतायु साथ घुमे,
वीजळी मेघ अम्बर सागर सुन्दर घाट हिलोळाय हूंफरके,
असुरा दळ ध्रुजत नाद खटंकिय बाह झटंकिय पटकती,
जग जब्बर जोगण आवड मोगल रास राहुडाये रमंकती(8)
नवमे बाजते गाजते छाजते साजते व्योम होम हवन करे,
नवलाख जोगणीयु वीस भुजाडीयु धुणत को प्रतिबिंब झरे,
हरखाय हियो जग मात दियो शुभ मांगत मीतय शुभमती,
जग जब्बर जोगण आवड मोगल रास राहुडाये रमंकती(9)
*🙏~~~~~मितेशदान(सिंहढाय्च)~~~~~🙏*
*कवि मीत*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें