Identity Crisisनो शिकार बनता चारणो...!
' Identity Crisis ' नो शिकार बनता चारणो माटे ऐक मुख्य कारण ऐ होई शके के आपणी भव्य चारणी संस्कृति प्रत्येनी अज्ञानता.
नगर-महानगरमां वसतो आपणो युवावगॅ ज्यारे अन्य समाजना संपॅक-परिचयमां आवे त्यारे वहेलोमोडो तेने आ प्रश्ननो सामनो करवो पडे छे के, ' गढवी ऐटले केवा ? '. युवान बिचारो ' गढवी ' नी व्याख्यात शोघवा हवातिया मारे छे ने ऐक ' Identity Crisis ' नो शिकार बने छे.
पेलो पश्न पुछनार तेनी आ मथामणने पामी जईने ( सबसीडी ) आपतो पूरक प्रश्न करे छे के, ' पेला सुप्रसिद्घ गायक के कलाकार जेवा ?' अने आपणा माथेथी मोटी आफत टळी होय ऐम समजी हाशकारो अनुभवी हकारमां सहमति आपी दईऐ छीऐ.
आवी संकटनी क्षणोमां ' चारणी साहित्य ' नुं वांचन संकटमोचन बनी आपणा बचाव पक्षे आवी जाय छे.
ऐ प्रश्न पूछनार वामनने आपणी विराट चारण संस्कृति दशॅन करावे छे के,
' तुं श्रावण मासमां जे स्तोत्रोनुं श्रवण करे छे तेना सजॅक ' पुस्कदंत ' ना अमे वारसदार, तुं नवरात्रीमां जे शकितनी भकित-आराघना करे छे ऐ ' भवानी मा ' ना अमे बाळ,
' अतिथिने मीठो आवकारो ' आपवानी भारतीय परंपराना लोकसंस्कारने जीवंत करनारा कवि काग बापुना अमे छोरुं छीऐ.
आम भव्य संस्कृतिनी भव्यताना दशॅन थतां पेली लधुताग्रंथीनी गांठ बंने छेडेथी छूटवा मांडे छे.
आपणे चारणो ऋषि-संतान छीऐ. साहित्य अने चारण तो ऐकबीजाना पयाॅय छे. तो चारणोऐ चारणी साहित्य प्रत्ये हंमेशा लगाव राखवो जोईऐ.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
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