*|| सिद्धाश्रम की कथा ||*
*|| वामन अवतार ||*
*|| छंद रेणंकी ||*
*||कर्ता-मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च)||*
समकाल वीते सत परबळ धर पर नरपळ बली एक दैत्य हुए,
वृद्धि कज बल बहु पावत जग भय इन्दर मती मन चैत्य जुए,
अनुठान जगावण यग्न मगन बली सर्व श्रेष्ठ दानीय गणे,
अवतार अळ्ये धर सकळ धुरंधर दैव तार वामन बणे,(1-81)
चिंतातुर भय भर भीतर अनुसर जल मही दैेवन गमन किते,
अळ अज भगवन तव कष्ट निकट दट कज अही सव याचत हिते,
थर थर थावत तन मन भय इंन्दर परभंजण
प्रति पल दमणे,
अवतार अळ्ये धर सकळ धुरंधर दैव तार वामन बणे,(2-82)
,(परभंजण-पवन)
भाखत मुख शब्द विराट महा वीर दानीय दैत उदार भयो,
जावत नहीं याचक दान विहोणो मन धर टेक अपार रयो,
यज्ञादि तपस्या तेज कार इति कारण दैवन मन फ़फ़णे,
अवतार अळ्ये धर सकळ धुरंधर दैव तार वामन बणे,(3-83)
रक्षण कज विष्णु सकळ भ्रमांड सबळ मनु दुति लघु देह धरे,
तेजस मय कीरत नयन मुख दरसत उच्चळ बली तद हरख भरे,
निरख़त लघु विप्र त्वरित बली भासत नमन सु लागत हरी चरणे,
अवतार अळ्ये धर सकळ धुरंधर दैव तार वामन बणे,(4-84)
त्रय पद धर याचत विप्र कथित कज गावन गुण हरी नाथ तणा,
सुण बात बटुक रूप हरी सम याचत उच्चळ मनु मुंझाय घणा,
दानी दन धरम धरावत धर महा दैवत दानम रखण प्रणे,
अवतार अळ्ये धर सकळ धुरंधर दैव तार वामन बणे,(5-85)
तद कद वैराट विप्र कर वरख़म नभ धरतल अड़ख़म बण्यो,
द्रख दैव अचंबन निरख़त रूप वीर लघु बाल विष्णु गण्यो,
नमने नव लोक नाथ कर जोड़ण नारायण दैतन दणे,
अवतार अळ्ये धर सकळ धुरंधर दैव तार वामन बणे(6-86)
गति वंत धर्यो नभ परथम धर तर सृस्टि तणो एक भाग गीयो,
द्वितीय धर्यो पाताल तले अळ नभ सह लोकन नाप लीयो,
उदार बली उछरंजण भासत तृत्तीय पद मु मथ्थ व्रणे,
अवतार अळ्ये धर सकळ धुरंधर दैव तार वामन बणे(7-87)
वरदान दिनों जस गावन परसन्न पावत दानीय शील बली,
सिद्धाश्रम थापन तय सिद्धि सब पामत ऋषि अही पाप जली,
जय जय हरी नाथन नारायण तव गुण *मीत* ध्यावत जगत जणे,
अवतार अळ्ये धर सकळ धुरंधर दैव तार वामन बणे(8-88)
*(बली की दानशीलता देखके श्री हरी बली पर प्रसन्न हुए,और कहा यहाँ तपस्या करने वाले को शीघ्र ही समस्त सिद्धियाँ प्राप्त होंगी,उसी समय से यह स्थान सिद्धाश्रम के नाम से विख्यात हे)*
*🙏---मितेशदान(सिंहढाय्च)---🙏*
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