मातृमहिमा
मेरी माॅं, माॅं सारे जग की, महतत्व वही महामाया है.
जिसका यश गाया वेदोंने, जिसने ब्रह्मांड बनाया है.
परिपालन वो पवनं बनके, जननी जनका हर बार करे.
श्र्वासों में आ करके जिसने, प्रानों का दूध पिलाया है.
धरती धरती बनके भरती, कबहू न किसे परिहरती है.
पर्वत नदियां पैडोंसे शोभित, ओषध विविध पकाया है.
जो गर्जत काले बादल में , बिजली बनके वो नृत्य करे.
करषी जल सागर का जिसने, बरषी मधुरं बरषाया है.
फलती रसधार बहार बनी, हसती कुसुमे कलिये कलिये.
उषमा संध्या बनके जिसने, नित नूतन रूप दिखाया है.
दिखता हि नहीं मुजको जगमें, कुछभी उससे बिलगा करके.
प्रभुताई कहौं इसमें उसकी, जिसने मुजको समजाया है.
हर बालक में दिखने लगती, सुरता अपनी महतारिनकी.
तुम देख जरा गहरी नजरे, कह माणेक रूप छुपाया है.
आ मातृमहिमा श्री माणेकभाइ थार्याभक्तनी छे
टाइप:- सामळा .पी. गढवी
मोटी खाखर (कच्छ)
मो:- 9925548224
जय माताजी
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