. ||नमस्तु मात नर्मदा||
. रचना :जोगीदान गढवी (चडीया)
. || दोहो ||
सरसत रसणा सम सदा, वरसत मात विलास
जल दरसत घट जोगडा, परसत पुन्य प्रकास
. || स्रोत्र ||
अकल्प कल्प से कथा नकौ प्रल्लेय नाशीनी
अनिष्ट हर्त ईष्ट तूं वरिष्ठ विंन्ध्या वाशीनी
सलील सप्त रंग मे शिवम उचार सर्वदा
भणंत चारणां भवां नमस्तु मात नर्मदा..01
अनंत काल से ईला महा सूताय मैखला
अमर्त कंटके अमर प्रवाह वारी पैखला
पवित्त चित्त नित्त तुं अराधकांय करअदा
भणंत चारणां भवां नमस्तु मात नर्मदा..02
प्रवाह राह मे परत करत नवांण कंकरा
क्रिपा सगत क्रिपालीनी समस्त होत शंकरा
सधंत आप जाप से सुयोग जोग है सदा
भणंत चारणां भवां नमस्तु मात नर्मदा..03
सुनान गंग सिद्ध तु द्रसंत पाप दाहणी
पदां धरंत पंकजे वरूण पूत्र वाहणी
समस्त अस्त्र सस्त्र हाथ गोम मे ग्रजे गदा
भणंत चारणां भवां नमस्तु मात नर्मदा..04
धरंन्त गुर्जरी धरा प्रचंड बाहू पाश तूं
जिवाडती जगत्त जणी अखंड एक आश तूं
परम प्रतापी पाद पुंन्य लक्ष मोक्ष है लदा
भणंत चारणां भवां नमस्तु मात नर्मदा..05
चलंत प्हाड चीरती पदे बजंत पैजणां
निवास प्रोढ निर्मलां जलां धरंत है जणां
तूंही त्रिलोक तार नार गुर्जरांण गर्वदा
भणंत चारणां भवां नमस्तु मात नर्मदा..06
व्रदान शीव का व्रदा सदाय पाप सोशणी
करे सूधा कमंडला पनंग गोद पोशणी
मदार पूष्प मंडलांण रैवतां बसो रदा
भणंत चारणां भवां नमस्तु मात नर्मदा..07
भली क्रिपाय भाल पे मया दया महान हो
जदा तदा रदा सदा जयत्व जोगीदान हो
पुरांण खंड रैवतां प्रचाळ बाळ पर्वदा
भणंत चारणां भवां नमस्तु मात नर्मदा..08
. || दोहो ||
मैखल तनया तुं महा, दैव वडी जळ दात
जपै मूनी सब जोगडा, मनख नमे पद मात
जोगीदान गढवी (चडीया) रचित नर्मदा स्तोत्र
मो.नं. 9898360102
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