*|| कृष्ण इन्दर नु युद्ध ||*
*|| गीत - सपाखरू ||*
*||कर्ता - मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*
काळा वादळा घेराणा माथे घेराणी वीजळी काळी,
आभे रमखाण मच्यो जुद्ध नो अषाढ़,
वाता वायरा वेगीला काळी आंधीयू बनी ने वीरा,
ग्वाला मथ्थे केर कोप्यो वज्जधरे गाढ़,(1)
छलाया नदीये नाळा विफ़र्ये व्रसाद छोड्यो,
तेदी किन्ना भयंकर घुघवाटा त्राड,
भमेडी भूराटे भोमे पछाड्यो प्रकोप भारी,
अभिमाने चूर हुतो इन्दर अखाड,(2)
गोवर्धन काहू पूजो गावो काहे गुण गान
महा जस गावो एक इन्दर महान,
नाही दिनों जल तल तरु लीला दिनों नाही,
दिनों आव सभे मुज शरणेय दान,(3)
प्रतिपाळ दिगपाळ सेवकार पुरंदर,
गोरधन रूड़ो ने महान गुणकार,
मेघ वरसाद तोरी कळा ही धर्म मोटो,
आडो नही आवे तोरो खोटो अहंकार,(4)
निरखि त्राटक्यो बला हक गाढो नदी नाळो,
पाळो छलकाया दक पटण प्रहार,
ग्वाला बाला खेडुवा चराते सवरभ गायु,
वालिडा त्राही पुकारे कान कीनो वार,(5)
काळ झाळ कोप माथे कीनोय कृपाय कान,
अति गति दोट दिए गोवर्धन आस,
कीनोय नमन लीला नाथ महा किरतारी,
स्हाय सरूपा बणो स्वामी सुरजास,(6)
क्रिशने उठायो तळ तर्जनी आधार किते,
तूटता तडाको मेरु ताङ्कयो तिराड,
फाटियो फटाक देता फुराटी भोम ने फाळी,
ऊंचो हुवो लीलियो वे कियो न उचाट,(7)
कडकयो घुराटी देतो वादळो वेगीलो कॉपी,
मेघ धारा छूटी कारा केर कु मसाल,
गड़ेडाटी हडेडाटी घमासाण नभ गाज्यूँ,
विफर्यो तोड़वा काजे मोभियो विशाल,(8)
छताये छकिलो नही मति कु सुधारे छटा,
पटा पटा छांटा पाडे मेघ के पटाक,
कटा कटा दळ काळा धृजावे धराय कोपी,
हळा हळ तांडवो कियो ज्यूँ हटाक,(9)
सात दी सरीखो मेघ व्रसायो इन्दर सुरो,
पूरे पुरो रोळयो हास्य अट्ट सु प्रहार,
वेरियो काळका काळ रूठी ने कियो वेरान,
हारियो छताये पाछो डग ले न हार,(10)
थाकियो व्रसावी धारा मेघ बारा खांगा थिया,
डगे न अम्बर गोरो किते कुळा डोळ,
तारिया गोकुल ग्वाल कृपा कान कीरतारी,
झुकायो इन्दर अळ्ये मान में झबोळ,(11)
पातकी अावियो धरा पर मेघ छोड़ी पाछा,
माफ कीयो हरि याचु याचु मति मान,
ओङ्ख्या न आपने चडायो कोप गाव ओप्यो,
गोप्यो खोटो केर अभिमान को गुमान,(12)
तोड़ी चकचुर कीनो मान वो गुमान तिको,
अरथ जणायो सरगेय को आसन,
मुरली मनोहराय माफ कीनो इंद्र *मीत,*
क्रूर पे अक्रूर हुवा स्थायी सत मन,(13)
*🙏----मितेशदान(सिंहढाय्च)----🙏*
*कवि मीत*
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